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________________ 358... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... पुरिमड्ढ़ आदि द्वारा तप पूर्ति की जाती हो, ऐसा देखने-सुनने में नहीं आता है। यह आपवादिक परिपाटी ज्ञानीजनों की करूणाबुद्धि का प्रभाव है। ____ महानिशीथसूत्र के अनुसार एक उपवास = अन्य तपों की अवगणना का कोष्ठक इस प्रकार है-70 एक उपवास = एक उपवास एक शुद्ध आयंबिल = एक उपवास दो आयंबिल एक उपवास चार एकलठाणा एक उपवास तीन नीवि एक उपवास दस अवड्ढ एक उपवास बारह पुरिमड्ढ ___ = एक उपवास चौबीस पौरूषी = एक उपवास पैंतालीस नवकारसी = एक उपवास अत्यन्त छोटा बालक भी जब तक सूत्रोपधान न कर सके, तब तक सूत्र की आराधना से वंचित न रहें, इस अपेक्षा से जीतव्यवहार के अनुसार उत्सर्गतप की सम्पूर्ति करने वाला एक अन्य कोष्ठक निम्नोक्त है।1उपवास = एक उपवास दो आयंबिल = एक उपवास रूक्ष तीन नीवि एक उपवास उपधान की चार नीवि = एक उपवास आठ बियासना एक उपवास अठारह साढ़पौरूषी एक उपवास चौबीस पौरूषी एक उपवास पैंतालीस नवकारसी एक उपवास 2000 गाथा का स्वाध्याय = एक उपवास 20 नमस्कारमंत्र की माला = एक उपवास उपधान के वाचना-क्रम में घटित परिवर्तन यदि महानिशीथसूत्र के आधार पर वर्तमान सामाचारी का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं, तो वाचनाक्रम-विषयक कुछ अन्तर परिलक्षित होते हैं।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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