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352... जैन गृहस्थ
के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
करने के बाद का चैत्यवंदन करते समय स्थापनाचार्य खुल्ला रखना चाहिए । 29. प्रात:कालीन और सायंकालीन प्रतिलेखन - क्रिया स्थापनाचार्य खुला रखकर करना चाहिए।
30. प्रचलित परम्परा के अनुसार प्रथम उपधान करने के पश्चात् खरतरगच्छीय-मत से छ: माह और तपागच्छीय-मत से बारह वर्ष बीत गए हों और माला नहीं पहनी हों, तो पुनः पहला उपधान करना चाहिए। यदि पुनः उपधान वहन करने की शक्ति न हो, तो साढ़े बारह उपवास करके माला पहनी जा सकती है। यदि माला का मुहूर्त अत्यन्त निकट हो तो छ: उपवास द्वारा माला पहन सकते हैं, शेष साढ़े छः उपवास बाद में करने चाहिए | 01 वर्तमान में पहला, दूसरा, चौथा और छठवां- ऐसे चार उपधानों की आराधना एक साथ करवाकर मालारोपण कर देते हैं। इसे पहला उपधान कहते हैं। यह अपवाद-मार्ग है। उत्सर्गत: छ: या सात उपधान एकसाथ करवाने के बाद ही माला पहनाई जाना चाहिए।
31. चैत्यस्तव(चौथा) और श्रुतस्तव (छठवां) ये दोनों उपधान मूलविधि से वहन किए जाते हैं। सेनप्रश्न के अनुसार पारणे के दिन वाचना ग्रहण की जा सकती है, यह नियम लगभग तपागच्छीय सामाचारी के अनुसार है।
32. सेनप्रश्न के निर्देशानुसार यदि श्राविका अन्तराय में बैठ जाए, तब भी उसे महानिशीथसूत्र के योगवहन किए हुए मुनि के समीप ही उपधान सम्बन्धी आवश्यक क्रिया करना चाहिए, अन्य मुनि या साध्वी उस क्रिया को करवाने का अधिकारी नहीं है।
33. सेनप्रश्न के अभिमत से उपधान - वहन की अवधि में हुए समस्त अपराधों की विशुद्धि के लिए उपवास या पौषध दिया जाता है, वह उपवास अहोरात्र - पौषध के साथ किया जाना चाहिए, केवल दिवस - पौषध का विधान नहीं है।
34. छकीया - उपधान में प्रवेश करने के दिन मालारोपणविधि की जाती हो, तो उस दिन सबसे पहले पवेयण, वाचना, समुद्देश आदि की क्रिया करवाते हैं, उसके पश्चात् मालारोपणविधि सम्पन्न करते हैं।
35. उपधानतप के साथ बीसस्थानक आदि अन्य तप नहीं किए जा सकते हैं। किसी उपधानवाही के कल्याणक तप चल रहा हो और उपधान - वहन के