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________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन .... ..351 'पवेयण' की विधि करने का कोई नियम नहीं है । 19. उपधान आदि की नंदी में श्रावक-श्राविकाओं को तीन नवकाररूप नंदीसूत्र सुनाया जाता है। 20. यदि उपधानवाही पंचमी तप झेला हुआ हो और छक्कीया में छठवें दिन पंचमी आ रही हो, तो उस दिन पंचमी का उपवास और सातवें दिन तप में आने वाला उपवास-छठ करना चाहिए। यदि छठ (बेला) करने की सामर्थ्य न हों, तो छठवें दिन पंचमी न आए उस प्रकार से उपधान-तप प्रारम्भ करना चाहिए। 21. उपधान तप पूर्ण होने के बाद भी यदि 'पवेयणा' में दिन अमान्य होता है, तो दिन की वृद्धि होती है। 22. पहला, दूसरा, तीसरा, पाँचवा उपधान चल रहा हो, उस समय चैत्र और आश्विन शुक्ल की ओलीजी आदि के तीन दिन आते हों, त असज्झाय के कारण वे दिन मान्य नहीं किए जाते हैं, परन्तु चौथा या छठवां उपधान हो, तो उन तीन दिनों की गिनती होती है । 23. कार्तिक आदि तीन चातुर्मास में ढाई दिन की असज्झाय गिनी जाती है, वह उपधान में नहीं मानी जाती है । 24. आवश्यक कारण उपस्थित होने पर संलग्न ( निरन्तर ) दो एकासन करवाए जा सकते हैं। 25. किसी भी माह की शुक्लपक्ष की पंचमी, अष्टमी या चतुर्दशी और कृष्णपक्ष की षष्ठी या चतुर्दशी इन तिथियों के दिन एकासन आता हो, तो यथाशक्ति आयंबिल करवाया जाता है। 26. यदि उपधान करने वाला बालक हो, वयोवृद्ध हो, कमजोर हो और यथानिर्दिष्ट तपपूर्वक उपधान नहीं कर सकता हो, तो नवकारसी, पौरूषी आदि तप करके उस तप-परिमाण की परिपूर्ति अवश्य कर देना चाहिए। 27. उपधान तप करने वाले श्रावक-श्राविकाओं को तप की स्मृति निमित्त सचित्त आदि का त्याग, ब्रह्मचर्यादि का नियम, पर्वतिथि को पौषध, चौदह नियम का पालन, सामायिक आदि में से कोई एक नियम अवश्य ग्रहण करना चाहिए। 28. तपागच्छीय परम्परानुसार प्रत्याख्यान पूर्ण करते समय तथा भोजन
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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