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________________ 350... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक अशुचिद्रव्य दिखाई दें, तो वसति अशुद्ध मानी जाती है। अशुद्ध वसति में सूत्राभ्यास या तत्सम्बन्धी वाचना आदि का ग्रहण नहीं किया जा सकता है। .... 7. उपधान वहन के दिनों में तेल - मर्दन एवं औषधोपचार नहीं करना चाहिए। प्रबल कारण उपस्थित होने पर गुरू - आज्ञा से औषधि आदि का सेवन कर सकते हैं। 8. क्रिया करते समय स्थापनाचार्य और क्रियाराधक व्यक्ति- इन दोनों के बीच मनुष्य या तिर्यंच आदि की आड़ नहीं आना चाहिए । 9. जिस स्थान पर सामुदायिक प्रतिलेखना हुई हो, वहाँ का काजा निकाल दिया गया हो, उसके बाद कोई उपधानवाही उस भूमि पर अकेला ही प्रतिलेखन कर रहा हो, तो उसे भी पूर्ववत् काजा लेना चाहिए, अन्यथा वह दिन अमान्य हो जाता है। 10. जिस दिन श्रावक या श्राविका उपधान पूर्ण करते हैं, उस दिन एकासन करना चाहिए और रात्रि को पौषध में रहना चाहिए। 11. जो साधक चातुर्मास में उपधान करने वाला है, वह शयन के लिए पट्ट का उपयोग कर सकता है। 12. यदि प्रबल कारण हो, तो छकीया के प्रथम दिन माला पहनाई जा सकती है। यदि प्रथम दिन माला पहनाना पड़े तो उस दिन 'पवेयणा' ( प्रवेदन विधि) करवाकर एवं वाचना देकर माला पहनाई जा सकती है। 13. उपधान से निवृत्त होकर माला पहननी हो, तो उस दिन उपवास करना चाहिए। 14. माला पहनाने वाले श्रावक को भी कम-से-कम एकासन अवश्य करना चाहिए। 15. उपधान करने वाली श्राविकाओं को मार्ग में चलते हुए गीत नहीं गाना चाहिए। 16. उपधान में उपवास के दिन कल्याणक आ जाए और उपधानवाहक कल्याणक-तप करता हो, तो वह उपधान में ही समाविष्ट हो जाता है। 17. हीरप्रश्न के मत से यदि कोई श्राविका ऋतुकाल में आलोचना-तप करती है, तो वह मान्य नहीं होता है। 18. जो उपधानतप पूर्ण कर चुका है, उसके लिए माला पहनने के दिन
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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