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348... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
की विधि करना चाहिए। 16. यदि मंदिर निकट हो, तो प्रतिदिन त्रिकाल जिनदर्शन करना चाहिए। 17. खरतर आम्नाय के अनुसार एक समय और तपागच्छ परम्परानुसार तीन
समय देववंदन करना चाहिए। 18. दोनों समय गुरू मुख से ही प्रत्याख्यान ग्रहण करना चाहिए। 19. इसके सिवाय उपधानवाही को प्रणिपातपूर्वक सौ खमासमण देना
चाहिए। 20. खड़े-खड़े सौ लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए। 21. पचास दिन का प्रथम उपधान करने वालों को सुखासन में बैठकर
'नमस्कारमंत्र' की बीस पक्की माला गिनना चाहिए। पैंतीस दिन का दूसरा उपधान करने वालों को ‘णमुत्थुणं' की तीन माला नित्य गिनना चाहिए। अट्ठाईस दिन का तीसरा उपधान करने वालों को ‘लोगस्ससूत्र'
की तीन माला नित्य गिनना चाहिए। 22. तपागच्छीय परम्परानुसार सन्ध्याकालीन प्रतिलेखन के समय 'मट्ठिसहियं'
का प्रत्याख्यान किया हो, तो विधिपूर्वक प्रत्याख्यान पूर्णकर पानी लेने के बाद ही देववंदन करना चाहिए।59 खरतरगच्छ की परम्परा में पाणाहार का प्रत्याख्यान ग्रहण करने के बाद ही सायंकालीन प्रतिलेखन-विधि करते
हैं। यही राजमार्ग है। 23. प्रतिदिन प्रवचन अवश्य सुनना चाहिए। 24. आयंबिल, एकासन आदि के लिए बैठते समय भूमि, पट्टा, बर्तन आदि
की अवश्य प्रमार्जना करना चाहिए। 25. भोजन करते समय चब-चब, सबड़क आदि की आवाज न हो, इस बात
की सावधानी रखनी चाहिए।60 ऐसी और अन्य क्रियाएँ भी गुरूगमपूर्वक
समझनी-सुननी-जाननी चाहिए। उपधानवाही के लिए विशिष्ट सूचनाएँ
यहाँ विवेच्य वर्णन उपधानवाहकों के लिए नि:सन्देह ध्यान देने योग्य है। प्रस्तुत विवरण सेनप्रश्न, उपधानतपक्रियादिसंग्रह आदि उत्तरकालीन ग्रन्थों के आधार पर दिया जा रहा है।
1. जिन-जिन सूत्रों के लिए उपधान-तप वहन करने में आता है, उन सूत्रों