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________________ 344... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक यहाँ उपधानवाहियों को किन-किन कारणों से आलोचना आती है, उन बिन्दुओं का उल्लेख किया जा रहा है, जो निम्न हैं 1. प्रतिलेखन किए बिना वस्त्र या बर्तन आदि का उपयोग करने से। 2. मुखवस्त्रिका या चरवले की आड़ आने से । यहाँ आड़ आने का मतलब उपधानवाही और उसकी मुखवस्त्रिका या चरवले के बीच से किसी व्यक्ति या बिल्ली आदि का निकल जाना है। जैन परम्परा में 'आड़' को अमंगल माना गया है । 3. मुखवस्त्रिका में से अनाज का जूंठा दाना निकलने से। 4. पहने हुए वस्त्र या शरीर पर से जूं निकलने से । 5. नवकारवाली (माला) गिनते समय गिर जाने से । 6. नवकारवाली गुम हो जाने से । 7. ज्ञानादि के उपकरण ठवणी - पुस्तक आदि हाथ से गिर जाने से । 8. स्थापनाचार्य के हाथ से गिर जाने या पाँव आदि के द्वारा उसकी आशातना होने से। 9. कचरे (काजा ) में से जीव का कलेवर या सचित्त बीजादि निकलने से । 10. स्त्री का पुरूष से और पुरूष का स्त्री से स्पर्श हो जाने से । 11. नवकारवाली गिनते, भोजन करते या प्रतिलेखना करते समय बातचीत करने से। 12. सचित्त वस्तु (अखण्ड धान आदि, कच्चा पानी आदि) का स्पर्श होने से । 13. दिन में शयन करने से। 14. रात्रि को संथारापौरूषी पढ़ाए बिना ही संथारा पर निद्राधीन होने से। 15. शरीर पर बिजली या दीपक आदि का प्रकाश गिरने से । 16. कामली ओढ़ने के निर्दिष्टकाल में उसे ओढ़े बिना ही मन्दिरदर्शन या आहार- पानी के लिए चले जाने से । उपधानवाही को शाल के स्थान पर कटासन नहीं ओढ़ना चाहिए, यह ध्यान में रहे । 17. वर्षा जल के छींटे शरीर पर गिरने से। 18. प्रतिक्रमण नहीं करने से । 19. खमासमण आदि क्रियाएँ विधियुत न करने से। 20. मन्दिर या उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'निसीहि' और बाहर निकलते
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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