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________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ... 339 के स्थान पर उतनी ही संख्या एवं समय के परिमाणवाला लोगस्ससूत्र और नमस्कारमंत्र गिना जाता है। चेतनमन को श्वासोश्वास पर केन्द्रित करने की यह प्रक्रिया बौद्धधर्म में 'विपश्यना' के नाम से प्रख्यात है। बौद्धधर्म के अनुयायियों ने इस प्रक्रिया को अत्यन्त विस्तार का रूप दिया है। जैन धर्म की उपधान साधना में विपश्यना के कुछ तत्त्व प्रत्यक्षतः देखे जा सकते हैं। इस साधना के अन्तर्गत कायोत्सर्ग-ध्यान आदि की जो क्रियाएँ की जाती है, उन्हें विपश्यना के विकसित चरण कहा जा सकता है। कारण कि विपश्यना का प्रादुर्भाव ध्यानादि के आलंबनों को लेकर ही हुआ है और हम ध्यानादि के माध्यम से श्वासोश्वास की प्रणाली को पुनर्जीवित कर सकते हैं। उपधानवाहियों के लिए करणीय-अकरणीय कार्य उपधानवाहियों के लिए निम्न कार्य करणीय माने गए हैं • प्रतिक्रमण करना • पौषधरूप सामायिक करना • नमस्कारमन्त्र का जाप करना • कायोत्सर्ग करना • देववंदन करना • चैत्यवंदन करना • द्वादशावर्त्तवन्दन करना • स्वाध्याय करना • व्याख्यान श्रवण करना • वाचना सुनना • श्रुतलेखन करना • गुरूसेवा करना • साधर्मिक (उपधानवाहियों) की सेवा करना • जयणा का पालन करना • मौनव्रत में रहना • उपवास तप करना • नीवि - तप करना • आयंबिल - तप करना • ऊनोदरी आदि तप करना • समिति - गुप्ति का पालन करना • लोच करवाना • आलोचना- प्रायश्चित्त करना, भव आलोचना करना • पूर्वजन्मों से वर्तमान काल तक सम्बन्धित रहे हुए भौतिक पदार्थों के प्रति ममत्व विसर्जन की विधि करना • बारह व्रत ग्रहण करना • दीक्षा ग्रहण करनी हो, तो दीक्षा मुहूर्त्त निकलवाना • दीक्षा ग्रहण का संकल्प करना • चतुर्थ व्रत ग्रहण करना • उछामणी ( धनादि) का वितरण करना • खमासमण देना • प्रदक्षिणा देना • भावपूजा करना • एक समय भोजन करना • गर्म पानी पीना • उचित द्रव्यों का भोग करना • वासचूर्ण ग्रहण करना आदि निरवद्य अनुष्ठानों का यथाशक्ति पालन करना चाहिए। उपधानवाहियों के लिए नहीं करने योग्य कृत्यों की सूची निम्नलिखित है• स्नान नहीं करना • दाढ़ी नहीं बनाना • हजामत नहीं बनवाना मेकअप नहीं करना • प्रातः कालीन भ्रमण नही करना • मेल नहीं उतारना • • एकासन से कम तप नहीं करना • विकथा - निंदा नहीं करना • हास
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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