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________________ 340... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक उपहास का त्याग करना • श्रावकों को सिले हुए वस्त्र नहीं पहनना • श्राविकाओं को सिर उघाड़ा नहीं रखना • महिलाओं को मर्यादाहीन वेश नहीं पहनना • सांसारिक - व्यवहारों का त्याग करना • व्यापार-धंधे का त्याग करना • सांसारिक समाचार नहीं देना • पत्रादि न लिखना न लिखवाना • सचित्त द्रव्यों का भोग नहीं करना • कच्चे पानी का उपयोग नहीं करना • पैसा-रूपया न रखना न रखवाना • संघपूजन के रूपयें स्वयं के हाथ में नहीं लेना • द्रव्य से ज्ञानपूजा एवं गुरूपूजा नहीं करना • किसी भी सावद्यकार्य के लिए आदेश नहीं देना। • खाने-पीने की वस्तुएँ नहीं बनवाना और उनके लिए आदेश भी नहीं देना। • एकासन आदि के लिए जो भी खाद्य सामग्री तैयार हुई है, उसकी संख्या नहीं गिनना • अनुकूल स्थान आदि की खोज नहीं करना • अन्य आराधकों के लिए उपद्रवरूप नहीं बनना • गुरू का अविनय नहीं करना • आयोजक-कार्यकर्त्ताओं की व्यवस्थाओं को नहीं तोड़ना • सुविधाओं की अपेक्षा नहीं रखना • जूठन नहीं छोड़ना • प्रतिनियत क्रियाओं को विस्मृत नहीं करना • प्रमाद नहीं करना • बैठे-बैठे निद्रा नहीं लेना • भोजन करते हुए बातचीत नहीं करना। • हरी वनस्पति का उपभोग नहीं करना • सावद्य-वचन नहीं बोलना। वर्तमान स्थितियों में उपधानवाही के लिए निम्न कार्यों का भी निषेध किया गया है - • व्यायाम करना • टी. वी. विडियों आदि देखना-सुनना • नवल कथाएं पढ़ना • मोटर, प्लेन, रेल, जहाज आदि किसी भी वाहन का सवारी हेतु उपयोग करना • अंताक्षरी खेलना • क्रिकेट आदि के सामाचार सुनना। मोबाईल द्वारा पारिवारिक सदस्यों की सार संभाल लेना • पंखे - लाइट आदि का उपयोग करना इत्यादि । इससे ज्ञात होता है कि उपधान एक कठिनतर साधना है । इस पर आरूढ़ हुआ व्यक्ति सांसारिक, पारिवारिक एवं व्यापारिक समस्त सावद्य प्रवृत्तियाँ न करता हुआ अप्रमत्तदशा में रहने का संकल्प करता है। साथ ही विविध प्रकार की विशिष्ट चर्याओं एवं तपश्चर्याओं का पालन करता हुआ स्वयं को मोक्षयोग्य बनाता है। यदि हम इस संबंध में तुलनात्मक पक्ष से विचार करें, तो कहा जा सकता है कि यह वर्णन जीतपरम्परा के अनुसार किया गया है। किसी मौलिक ग्रन्थ में यह वर्णन पढ़ने को नहीं मिला है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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