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338... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... सभी परम्पराओं ने ज्ञान के इन आठ आचारों को माना है। इससे यह फलित होता है कि उपधान जैन-धर्म के सभी अनुयायियों का एक अनिवार्य अंग है। भले ही कोई परम्परा इसका अनुसरण करे या नहीं, किन्तु ज्ञानाचार की दृष्टि से उपधान की उपासना का अस्तित्व स्वत:सिद्ध हो जाता है।54 योग और उपधान
उपधान एक यौगिक क्रिया है। जिस प्रकार यौगिक क्रियाओं में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि-इन आठ प्रकारों की साधनाएँ की जाती है, उसी प्रकार उपधान तप में भी इस प्रकार की साधनाओं का प्रयोग होता है। यम-नियमादि से लेकर समाधि तक की सभी योग साधनाएँ उपधान वहन में अनुष्ठित होती हैं, जैसे-अभक्ष्य आदि पदार्थों का सर्वथा के लिए त्याग कर देना यम है। उपधान-काल में प्रवचनादि द्वारा सचित्त वस्तु का त्याग करना, वस्त्र नहीं धोना, चप्पल आदि नहीं पहनना आदि कई प्रकार की प्रतिज्ञाएँ करना नियम है। प्रतिलेखना, प्रतिक्रमण, देववन्दन आदि विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ करना आसन है। कायोत्सर्ग आदि करना प्राणायाम है। उपवास या एक समय भोजन करना प्रत्याहार है। धर्मादि का चिन्तन करना ध्यान है। उपधान-तप की समस्त क्रियाओं को आत्मसात कर लेना धारणा है
और पौषध एवं सामायिक की साधना करना समाधि है। __इस प्रकार उपधान-तप द्वारा अष्टांगयोग की साधना निर्विवाद रूप से सिद्ध होती है। विपश्यना और उपधान
जैन आगमिक परम्परा में आत्मशुद्धि एवं अतिचारों की विशुद्धि के लिए 'कायोत्सर्ग' करने का जो प्रावधान है, वह पूर्वकालीन-परम्परा से है। कायोत्सर्ग में मुख्यत: शरीर आदि के ममत्व का विसर्जन करके श्वासोश्वास को देखने का उपक्रम किया जाता है। इस उपक्रम के माध्यम से आती-जाती हुई श्वास पर मन को नियंत्रित कर नवीन कर्मों का आस्रव रोका जाता है और पुराने दोष विनष्ट किए जाते हैं, इसीलिए जैन धर्म में दिवस, रात्रि, पक्ष आदि में लगे हए दोषों की शुद्धि के निमित्त प्रतिक्रमण के समय 27 श्वासोश्वास, 25 श्वासोश्वास, 8 श्वासोश्वास आदि गिनने का नियम है। वर्तमान में श्वासोश्वास गिनने की परम्परा लुप्त-सी हो चुकी है। अब श्वासोश्वास गिनने