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________________ 334... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक दो आयंबिल के बराबर फिर एक उपवास, एक आयंबिल के बराबर फिर आधा उपवास ऐसे कुल ढाई उपवास - परिमाण जितना तप किया जाता है । प्रचलित विधि के अनुसार इस सूत्र के ग्रहणकाल में दो उपवास एकासन के पारणापूर्वक किए जाते हैं और ढाई उपवास के तप की पूर्ति की जाती है। वाचना- अर्वाचीन परम्परा के अनुसार 1. 'अरिहंत चेइयाणं' से 'निरूवसग्गवत्तियाए' तक 2. 'सद्धाए' से 'काउस्सग्गं' तक 3. 'अन्नत्थ उससिएणं' से 'जाव वोसिरामि' तक इन तीन अध्ययनों की वाचना उपवास के दिन अर्थात तीसरे दिन दी जाती है | 46 5. चतुर्विंशतिस्तव ( लोगस्स सूत्र) उपधान • इस सूत्र में 28 पद, 28 संपदा, 27 गुरू, 229 लघु- कुल 256 अक्षर और पच्चीस अध्ययन हैं। छः गाथाओं के चौबीस अध्ययन और सातवीं गाथा का पच्चीसवाँ अध्ययन माना गया है। • इस सूत्र की तप साधना में 28 दिन लगते हैं। इसमें साढ़े पन्द्रह उपवास परिमाण जितना तप किया जाता है। पौषध के दिन 28 होते हैं, इसलिए रूढ़ि से इस उपधान को 'अट्ठावीसड' नाम से कहा जाता है। इस सूत्रोपधान में तीन वाचनाएँ होती हैं। प्रथम वाचना तीन उपवास दूसरी वाचना छ: उपवास, तीसरी वाचना साढ़े छ: उपवास अर्थात उतने परिमाण का तप किए जाने पर दी जाती है। तप- महानिशीथ में वर्णित विधि के अनुसार इस उपधान में प्रथम एक अट्ठम, फिर श्रेणीबद्ध पच्चीस आयंबिल किए जाते हैं। इस तरह साढ़े पन्द्रह उपवास-परिमाण तप पूर्ण किया जाता है । प्रचलित विधि के अनुसार एक दिन उपवास और एक दिन एकासन इस क्रम से साढ़े पन्द्रह उपवास जितना तप परिपूर्ण किया जाता है। वाचना - मूल विधि के अनुसार इस सूत्र की प्रथम वाचना अट्ठम तप के दिन 'लोगस्स उज्जो अगरे' - इस प्रथम गाथा की दी जाती है । प्रचलित विधि के अनुसार तीन उपवास परिमाण जितना तप पूर्ण होने पर प्रथम वाचना दी जाती है। मूल विधि के अनुसार- 1. उसभ मंजिअं च वंदे 2. सुविहिं च पुप्फदंतं 3. कुथुं अरं च-इन तीन गाथाओं की दूसरी वाचना बारहवें आयंबिल के दिन
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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