SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...335 दी जाती है। प्रचलित विधि के अनुसार द्वितीय वाचना नौ उपवास- परिमाण तप के अन्त में दी जाती है। प्राचीन विधि के अनुसार 1. एवं मए अभिथुआ 2.किािय वंदिय महिया 3. चंदेसु निम्मलयरा-इन तीन गाथाओं की तीसरी वाचना पच्चीसवें आयंबिल के दिन की जाती है। प्रचलित विधि के अनुसार तृतीय वाचना साढ़े पन्द्रह उपवास परिमाण जितना तप पूर्ण होने पर उपवास के दिन दी जाती है।47 6. श्रुतस्तव (पुक्खरवरदी सूत्र) उपधान • इस सूत्र में16 पद, 16 संपदाएँ, 34 गुरू, 182 लघु ऐसे कुल 216 अक्षर और 4 गाथाएँ हैं। . खरतरगच्छ सामाचारी के अनुसार श्रृतस्तव नामक सत्र में पाँच अध्ययन हैं। इन पाँच अध्ययनों का क्रम इस प्रकार है-प्रथम की दो गाथा के दो अध्ययन, तृतीय गाथा का तीसरा अध्ययन, चौथी गाथा के प्रथम दो पादों का चतुर्थ अध्ययन एवं अन्तिम दो पादों का पाँचवां अध्ययन है। • इस सूत्र में इन पाँच अध्ययनों की एक वाचना होती है। इसे वहन करने के उद्देश्य से साढ़े तीन उपवास परिमाण जितना तप किया जाता है। इसमें पौषध के छ: दिन होते हैं, इसलिए यह 'छक्कड़' नाम से कहा जाता है। तप- प्राचीन विधि के अनुसार इस सूत्र के वहन काल में क्रमश: एक उपवास, फिर लगातार पाँच आयंबिल किए जाते हैं। इस प्रकार साढ़े तीन उपवास की पूर्ति की जाती है। प्रचलित विधि के अनुसार इस सूत्र का अध्ययन करने के लिए छ: दिन एकान्तर उपवासपूर्वक साढ़े तीन उपवास-परिमाण का तप किया जाता है। वाचना- इस सूत्र के पाँच अध्ययनों 'पुक्खरवरदी' से लेकर 'सुअस्स भगवओ' तक की एक वाचना छठवें दिन दी जाती है।48 7. सिद्धस्तव (सिद्धाणंबुद्धाणं सूत्र) उपधान • इस सूत्र में 20 पद, 20 संपदा, 26 गुरू, 150 लघु-कुल 176 अक्षर और पाँच गाथाएँ हैं। . खरतरगच्छ सामाचारी के मतानुसार सिद्धस्तव नाम का सातवाँ उपधान एक वाचना और एक उपवासपूर्वक एक दिन में सम्पन्न किया जाता है।49 • विधिमार्गप्रपा के अनुसार वर्तमान परिपाटी में सिद्धस्तवसूत्र का उपधान
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy