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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...333 • इसमें पौषध के दिन 35 होने से यह ‘पांत्रीसड' नाम से भी कहा जाता है। इस सूत्र का वहन साढ़े उन्नीस उपवास बराबर तप करके किया जाता है।
तप- प्राचीन विधि के अनुसार इस सूत्र के वहनकाल में सर्वप्रथम तेला, फिर लगातार बत्तीस आयम्बिल किए जाते हैं। कुल 19 उपवास परिमाण जितना तप 35 दिनों में किया जाता है। प्रचलित विधि के अनुसार भी यह उपधान 35 दिनों में पूर्ण किया जाता है, परन्तु अट्ठम एवं आयंबिल न करके एक उपवास, एक एकासन-इस क्रम से 15 उपवास एवं 17 एकासन किए जाते हैं।
वाचना- इस सूत्र के उपधान में 1. ‘णमुत्थुणं' से 'भगवंताणं' तक 2. 'आइगराणं' से 'सयंसंबुद्धाणं' तक 3. 'पुरिसुत्तमाणं' से 'गंधहत्थीणं' तकइन तीन संपदाओं की प्रथम वाचना अट्ठम के दिन दी जाती है। ____1. 'लोगुत्तमाणं' से 'लोगपज्जोअगराणं' तक 2. 'अभयदयाणं' से ‘बोहिदयाणं' तक 3. 'धम्मदयाणं' से 'चक्कवट्टीणं' तक-इन तीन संपदाओं की दूसरी वाचना मूल रूप से सोलहवें आयंबिल के दिन दी जाती है।
1. 'अप्पडिहयवर' से 'विअट्टछउमाणं' तक 2. “जिणाणं' से 'मोअगाणं' तक 3. 'सव्वन्नूणं' से 'जिअभयाणं' तक-इन तीन संपदाओं की तीसरी वाचना मूल रूप से बत्तीसवें आयंबिल के दिन दी जाती है। प्रचलित
_ विधि के अनुसार अन्तिम गाथा 'जेअ' से 'वंदामि' पद की वाचना तीसरी वाचना के साथ दी जाती है।45 4. चैत्यस्तव (अरिहंतचेईयाणं सूत्र) उपधान
• इस सूत्र में 43 पद, 8 संपदा, 29 गुरू और 200 लघु, ऐसे कुल 229 अक्षर और तीन अध्ययन हैं।
• इस सूत्र के उपधान में चार दिन लगते हैं। इस सूत्र की एक वाचना होती है। इसमें ढ़ाई उपवास-परिमाण का तप किया जाता है।
• इसमें पौषध के दिन चार होते हैं।
• प्रचलित विधि के अनुसार शक्रस्तव (35 दिन) और चैत्यस्तव (4 दिन) दोनों उपधान एक साथ वहन किए जाते हैं। इस प्रकार ये दोनों उपधान उनचालीस दिन में पूर्ण होते हैं, अतएव रूढ़ि से इसे चालीसड' कहते हैं।
तप- प्राचीन विधि के अनुसार इस सूत्र के अध्ययन-काल में क्रमश: एक उपवास, फिर लगातार तीन आयंबिल किए जाते हैं। इस प्रकार एक उपवास,