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332... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
• इस सूत्रवहन में 20 दिन लगते हैं। तपागच्छ परम्परानुसार यह उपधान 18 दिनों में पूर्ण होता है।
• इसमें मुख्यतया दो वाचनाएँ होती हैं। प्रथम वाचना पाँच उपवास द्वारा आदि के पाँच अध्ययनों की दी जाती है और दूसरी वाचना साढ़े सात उपवासों द्वारा शेष तीन अध्ययनों की दी जाती है। इसमें पूर्वसेवा होती है, किन्तु उत्तरसेवा नहीं होती है।42 पौषध के दिन 20 होते हैं अत: इसका दूसरा नाम 'वीसडंति' है।43 ___ तप- प्राचीन विधि के अनुसार इस श्रुतस्कंध(सूत्र) के काल में क्रमश: पाँच उपवास, फिर श्रेणीबद्ध आठ आयंबिल फिर तीन उपवास होते हैं। कुल 12 उपवास परिमाण तप सोलह दिनों में किया जाता है। अर्वाचीन विधि के अनुसार इस सूत्र का उपधान एकान्तर उपवास और पारणे में एकासन करते हुए साढ़े बारह उपवास-परिमाण के तपपूर्वक किया जाता है।
वाचना- प्रचलित परम्परा के अनुसार 1. 'इच्छामि पडिक्कमिउं' से लेकर 'विराहणाए' तक 2. गमणागमणे 3. 'पाणक्कमणे' से लेकर 'हरिअक्कमणे' तक 4. 'ओसा' से लेकर 'संकमणे' तक 5. जे मे जीवा विराहिया-इन पाँच अध्ययनों की प्रथम वाचना इस सूत्र के प्रारम्भ दिन से नौवें दिन तक दी जाती है। 6. “एगिंदिया' से लेकर ‘पंचिन्दिया' तक
7. 'अभिहया' से 'दुक्कडं' तक 8. 'तस्सउत्तरी' से 'ठामि काउस्सग्गं' तक इन तीन चूला-अध्ययनों की दूसरी वाचना 19 वें दिन दी जाती है। 3. अरिहंतभावस्तव (णमुत्थुणं सूत्र) उपधान
• इस सूत्र में 33 पद, 9 संपदा, 33 गुरू और 264 लघु-कुल 298 अक्षर हैं। ‘णमुत्थुणं' से 'विअट्टछउमाणं' तक बत्तीस पद हैं अत: इसमें बत्तीस अध्ययन माने गए हैं।
• इस सूत्र को आत्मस्थ करने में 35 दिन लगते हैं। प्रचलित विधि के अनुसार इस सूत्र की तीन वाचनाएँ होती हैं। प्रथम वाचना तीन उपवास, दूसरी वाचना आठ उपवास और तीसरी वाचना साढ़े आठ उपवास के परिमाण तप पूर्ण होने पर दी जाती है।
• विधिमार्गप्रपा के अनुसार तीन-तीन संपदाओं की तीन वाचनाएँ होती हैं तथा अन्तिम गाथा की वाचना तीसरी गाथा के साथ दी जाती हैं।44