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________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...331 वाचना- प्राचीन विधि के अनुसार इस सूत्र के प्रत्येक अध्ययन की पृथक्पृथक् वाचनाएँ होती हैं, किन्तु अर्वाचीन विधि के अनुसार 1. णमो अरिहंताणं 2. णमो सिद्धाणं 3. णमो आयरियाणं 4. णमो उवज्झायाणं 5. णमो लोए सव्वसाहूणं। इन पाँचों अध्ययनों की एक वाचना पाँच उपवास परिमाण तप पूर्ण होने पर दी जाती है अर्थात एकासना-उपवास, एकासना-उपवास के क्रम से प्रथम वाचना नौवें दिन होती है। दूसरी वाचना 6. एसो पंच णमुक्कारो 7. सव्वपावप्पणासणो 8. मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ़मं हवइ मंगलं-इन तीन चूलाअध्ययनों की उन्नीसवें दिन दी जाती है।39 • खरतर शिरोमणि, उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी महाराज साहब के निर्देशानुसार खरतरगच्छ की प्रचलित परम्परा में पहले उपधान के अन्तर्गत 9 वें, 19 वें, 29 वें, 39 वें, 44वें, 50 वें, 51 वें दिन वाचना होती है। दूसरे उपधान में 7 वें, 19 वें, 34 वें दिन वाचना होती है तथा तीसरे उपधान में 7 वें, 15 वें एवं 27 वें दिन वाचना होती है। • इस सूत्र के अध्ययन काल में 20 दिन लगते हैं अत: इस उपधान का दूसरा नाम 'वीसडंति' भी है। • इस सूत्र की तपविधि के सम्बन्ध में एक अपवादमार्ग यह भी है कि जो विशेष रूप से असमर्थ हैं और एकान्तर उपवास के पारणे में एकासन नहीं कर सकते हैं। वे इस सूत्रोपधान को एकान्तर उपवास और पारणे में बीयासन तप करते हुए भी वहन कर सकते हैं, किन्तु ऐसी स्थिति में बीस दिन के कालमान में ग्यारह उपवास जितना ही तप होता है40 अत: एकाध उपवास बढ़ाकर तप पूर्ति की जाती है। • विधिमार्गप्रपाकार ने प्रथम वाचना के पूर्व पाँच उपवास बराबर किए जाने वाले तप को पूर्वसेवा कहा है और दूसरी वाचना के पूर्व तीन उपवास के बराबर तप को उत्तरसेवा कहा है।41 2. इरियावहियश्रुतस्कन्ध(इरियावहि सूत्र) उपधान • इस श्रुतस्कन्ध में 32 पद, 8 संपदा, 24 गुरू और 175 लघु, ऐसे कुल 199 अक्षर हैं, आठ अध्ययन हैं और अन्तिम के तीन अध्ययनों को 'चूला' कहा गया है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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