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330... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
से शेष सूत्रों की समुद्देश एवं अनुज्ञा - विधि भी इसी के साथ सम्पन्न कर ली जाती है। यह पहला उपधान खरतरगच्छ परम्परा में 51 दिन का और तपागच्छ परम्परा में 47 दिन का होता है।
दूसरा उपधान- इस उपधान में शक्रस्तव ( णमुत्थुणसूत्र ) का अध्ययन होता है। यह उपधान प्रचलित विधि के अनुसार दोनों परम्पराओं में 35 दिन का होता है।
तीसरा उपधान- इस उपधान में नामस्तव ( लोगस्ससूत्र) की वाचना ली जाती है। दोनों परम्पराओं में यह उपधान 28 दिनों में पूर्ण किया जाता है ।
इस प्रकार वर्तमान में पृथक्-पृथक् रूप से तीन उपधान करके सभी सूत्रों को वहन किया जाता है। प्राचीन परम्परा में सभी सूत्र एक साथ वहन किए जाते थे, किन्तु देहबल, धृतिबल, मनोबल एवं संहननबल की क्षीणता (न्यूनता) के कारण ही मूलविधि में परिवर्तन आया है, किन्तु यह परिवर्तन भी आगमिकआचरणा को जीवन्त बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया है।
1. पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध (नमस्कारमंत्र सूत्र ) उपधान
• श्री पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध में 9 पद, 8 संपदा, 37 61 लघुअक्षर और 7 गुरूअक्षर-कुल 68 अक्षर हैं, आठ अध्ययन हैं और अन्तिम तीन अध्ययन 'चूला' नाम से कहे जाते हैं।
• इसमें प्रचलित विधि के अनुसार दस उपवास और दस एकासन, ऐसे साढ़े बारह उपवास-परिमाण तप एवं दो वाचनाएँ होती हैं। प्रथम वाचना पाँच उपवासों से और दूसरी वाचना 38 साढ़े सात उपवासों से दी जाती है। यहाँ चार एकासन का एक उपवास गिनना चाहिए।
तप- महानिशीथसूत्र आदि में वर्णित प्राचीन विधि के अनुसार इस सूत्र के अध्ययन काल में क्रमश: निरन्तर पाँच उपवास, फिर लगातार आठ आयंबिल एवं तीन उपवास किए जाते हैं। इसमें 16 दिन लगते हैं। प्रचलित विधि के अनुसार एकान्तर उपवासपूर्वक धारणा में एकासना करते हुए 20 दिन में साढ़े बारह उपवास-परिमाण का तप किया जाता है।
यह मननीय है कि महानिशीथ में वर्णित विधि के अनुसार पाँच उपवास, आठ आयंबिल और अन्त में तीन उपवास मिलकर 12 उपवास होते हैं, जबकि अर्वाचीन विधि के अनुसार दस उपवास और दस एकासन करते हैं, तब 12 उपवास से कुछ अधिक यानी साढ़े बारह उपवास - परिमाण तप होता है।