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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...325 होती है। शासन, संघ और धर्म की सेवा करने से चराचर विश्व की सेवा हो जाती है अत: उपधान तप में किसी प्रकार का विरोधाभास नहीं है। उपधान का लोकोत्तर माहात्म्य
उपधान एक आवश्यक अनुष्ठान है। आचारप्रदीप में कहा गया है कि श्रुतज्ञान की प्राप्ति के लिए साधक को विधिपूर्वक उपधान करना चाहिए।19
कुछ लोग कहते हैं नमस्कारमन्त्रादि को पढ़ने के लिए उपधान करना क्यों आवश्यक है? यदि उपधान किए बिना ही नमस्कारमंत्र आदि सूत्रपाठ पढ़ लिए जाए, तो क्या दोष लगता है? इस तप का माहात्म्य क्या है? यह अनुष्ठान क्यों किया जाना चाहिए? इसका समाधान महानिशीथ आदि सूत्रों के माध्यम से सहजतया दिया जा सकता है।
महानिशीथसूत्र में इसका महत्व बतलाते हुए कहा गया है,- जिस प्रकार साधुओं के लिए योगवहन किए बिना आगम (शास्त्रवचन) पठन आदि शुद्ध नहीं होते हैं, उसी प्रकार श्रावकों के लिए भी उपधान तप किए बिना नमस्कारादि सूत्र पढ़ना, याद करना आदि शुद्ध नहीं होते हैं।20 जो लोग उपधानतप को नहीं मानते हैं, या उसके प्रति रूचि नहीं रखते हैं, उनके लिए यह ज्ञातव्य है कि महानिशीथसूत्र में अकाल, अविनय, अबहुमान, अनुपधान आदि आठ प्रकार के ज्ञानकुशील कहे गए हैं, उनमें अनुपधान कुशील को महादोष वाला बताया है।21 ____ भगवान् महावीर ने गौतमस्वामी को इस अनुष्ठान के महत्व का मूल्यांकन करते हुए कहा है- हे गौतम! जो कोई व्यक्ति उपधान किए बिना सुप्रशस्तज्ञान को पढ़ता है, पढ़ाता है या पढ़ते हुए की अनुमोदना करता है, वह महापापकर्म का बंधन करता है और ज्ञान की महान् आशातना करता है।22 इस प्रकार महानिशीथसूत्र में उपधान तप किए बिना नमस्कारादि सूत्र पढ़ने आदि का सर्वथा निषेध किया गया है।
यद्यपि वर्तमान में द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि की अपेक्षा लाभालाभ का विचार करके आचरणा से उपधान किए बिना भी सूत्रपाठादि को ग्रहण करते-करवाते हुए देखा जाता है, परन्तु जिसने पूर्वकाल में नमस्कारादि सूत्रों को पढ़ लिया है, उस व्यक्ति को भी जब सद्गुरू का योग संप्राप्त हो जाए, तब अविलंबतापूर्वक उपधान-तप अवश्य कर लेना चाहिए।