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दुक्कडं।
पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...311 पोसइ सामाइय संछियस्स जीवस्स जाइ जो कालो। सो सफलो बोधव्वो सेसो संसार फलहेउ।।5।।
पंचप्रतिक्रमणसूत्र-विधिसहित, पृ.-250 69. पंचप्रतिक्रमणसूत्रविधिसहित(पार्श्वचन्द्रगच्छीय), पृ. 250-51 70. स्वाध्यायसमुच्चय, पृ. 231 71. स्थानकवासी परम्परानुसार पौषध पारने का सूत्रपाठ यह है
एयस्स एगारसस्स पोसहवयस्स पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा ते आलोउँअप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय सेज्जासंथारए, अप्पमाज्जिय-दुप्पमज्जिय सेज्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवण भूमि, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय उच्चारपासवण भूमि, पोसहस्ससम्म अणणुपालणया। जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि
मंगलसाधना, पृ.-122 72. तिलकाचार्यसामाचारी, पृ.-15 73. वही, पृ.-16 74. जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावली, संपा-महो. विनयसागर, पृ.-38 75. विधिमार्गप्रपा, पृ.-19. 76. तिलकाचार्यसामाचारी, पृ.-16 77. जिनवल्लभसूरि-ग्रन्थावली, पृ.-43 78. तिलकाचार्यसामाचारी, पृ.-17 79. सामाचारीप्रकरण, पृ.-13 80. जिनवल्लभसूरी-ग्रन्थावली, पृ.-43 81. विधिमार्गप्रपा, पृ.-21 82. सामाचारीप्रकरण, पृ.-13 83. विधिमार्गप्रपा, पृ.-21 84. तिलकाचार्यसामाचारी, पृ.-17 85. सुत्तनिपात, 26/25-27 86. अंग्रत्तरनिकाय, 3/37 उद्धत-जैन, बौद्ध और गीता का तुलनात्मक अध्ययन,
पृ.298