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पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...309 54. पंचप्रतिक्रमणसूत्र (अचलगच्छीय), पृ.-125 55. पंचप्रतिक्रमणसूत्र विधिसहित (पार्श्वचन्द्रगच्छीय), पृ.-242 56. विधिमार्गप्रपा, पृ.-21 57. निम्न चारों प्रकार के मांडला पाठों में प्रत्येक में आसन्ने-मज्झे-दूरे इस प्रकार
तीन-तीन स्थान विशेष कारण से रखे जाते हैं। यदि रात्रि में बाहर की भूमि पर कोई बैल आदि पशुओं का और अंदर की भूमि में कुंथु आदि जीवों का उपद्रव हो जाए, तो समीप की जगह छोड़कर मध्य की जगह और मध्य की जगह में भी उपद्रव हो जाए, तो दूर की जगह-इस तरह तीन में से किसी एक स्थान का यथासंभव उपयोग कर सकते हैं। आगाढ़ कारण-विशिष्ट रोग या चोर आदि का भय हो, अथवा संयम का उपघात हो-इन विशेष कारणों में उपाश्रय के बाहर नहीं जाना चाहिए। इसी तरह अणहियास-अहियासे यानी मल-मूत्र सम्बन्धी सह्य-असह्य स्थिति के आधार पर भी दूर, मध्य एवं समीप वाले स्थान का उपयोग करना चाहिए।
धर्मसंग्रह, भा.-1, पृ.- 261-62 58. विधिमार्गप्रपा, पृ.-20 59. श्रावकपंचप्रतिक्रमणसूत्र-विधिसहित(खरतरगच्छ), पृ.-129-133 60. उपधानविधि तथा पोसहविधि, संपा.-कंचनविजयगणि, पृ.-45-47 61. श्रावकपंचप्रतिक्रमणसूत्र (अचलगच्छीय), पृ.-126-28 62. पंचप्रतिक्रमणसूत्रविधि (पायच्छंदगच्छ), पृ.247-249 63. स्वाध्यायसमुच्चय (त्रिस्तुतिगच्छ), पृ.-232-40 64. खरतर-आम्नाय में सामायिकव्रत एवं पौषधव्रत को पूर्ण करते समय 'भयवं
दसणभद्दो' का सूत्रपाठ बोला जाता है जो निम्न हैभयवं दसण्णभद्दो सुदंसणो थूलिभद्द वयरो या सफली कय गिह चाया, साहू एवं विहा हुंति ॥1॥
साहूण वंदणेणं, नासइ पावं असंकिआ भावा।
फासुअ दाणे निज्जर, अभिग्गहो नाणमाईणं ।।2।। छउमत्थो मूढमणो, कितिय मित्तंपि संभरइ 'जीवो। जं च न संभरामि अहं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥3॥
जं जं मणेण चिंतिय, मसुहं वायाए भासियं किंचि।
असुहं काएण कयं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ।।4।। सामाइय पोसह संट्ठियस्स, जीवस्स जाइ जो कालो। सो सफलो बोधव्वो, सेसो संसारफलहेऊ ॥5॥