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________________ 308... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... पायच्छंदगच्छ में निम्न चैत्यवंदनसूत्र बोलने की परम्परा हैसिरिरिसहेसर गुणनिधान, सेवक सुखदायक, अजिते जीत्या कर्म सबल, हवा जगनायक, संभव भवना भय हरेवि, पाम्या शिवराज, अभिनंदन जिन मुझ मिल्या, सीधा सवि काज, सुमति-सुमति दायक जिनह, सुरनर सारे सेव पद्मप्रभ जिनदंसणे, जन्म मरण संखेव।।1।। श्री सुपास मुज पूरे आश, भवना दुखवारी, चंद्रप्रभु जिनतणी, कांति देखव मनोहारी, सुविधि सुविधि परे धर्म कह्यो, तिहुयण जण साखी, शीतल संयम सिरिवरी, घट जीवसु राखी, श्री श्रेयांस पाय प्रणमिये, इग्यारमो जिणिंद, वासुपूज्य मन ध्याइओ, केवलनाण दिणिंद।।2।। विमल-विमल धीकरण, तरण भव सायर प्रवहण, जिण अनंते भव अंत कयों, जणे सुरनर जण, धर्म जिणेसर सोमवयण, तप तेजे दिनमणि, कृपा-करण श्री शांतिनाथ, जसथावर अणुदिणि, कुंथुनाथ चक्रीजगही, छट्ठो सत्तरमो धर्म, अर जिनवरपय ओलगे, लब्भे शिवपद शर्म।।3।। मल्लिनाथ दुय मल्ल दुज्झय, अंतरना जीत्या, मुनिसुव्रत व्रत्त सुष्टु धरी, लोकाग्रे पहुता, नमि नामी रतिपतिय मान, रिपु सर्व खपाव्या, श्री पार्श्वनाथ त्रेविसमो, त्रिभुवन सकल सरूप, श्री महावीर तीर्थेसरं, नमिये विविध सरूप।।4।। इणिपरे जिन चोविस थव्या, पुरूषोत्तम सिद्धा, सेव करी एक चित्त जेणे, ते साथे लीधा, यद्यपि जिणवर रागरहित, पण सेवक ने तारे, द्वेष तज्यों पण अवर लोग, सुंसंग निवारे, तिणकारण भगते भणिय, वंदु देव त्रिकाल, प्रभु तुठे वंछित फले, जाणे बालगोपाल ।।5।। 47. विधिमार्गप्रपा, पृ.-20 48. वही, पृ.-21 49. वही, पृ.-21 50. वही, पृ.-21 51. यदि चन्दन आदि के प्रतिष्ठापित स्थापनाचार्य हों, तो अलग से स्थापनाचार्य की स्थापना करने की जरूरत नहीं रहती है, परन्तु पुस्तक, माला आदि उपकरणों की कुछ समय के लिए स्थापना की हुई हो, तो उनकी स्थापना अवश्य करनी चाहिए अर्थात प्रतिलेखना करने के पहले उनका उत्थापन करना चाहिए और प्रतिलेखना करने के बाद पुन: उनकी स्थापना करके शेष क्रिया करनी चाहिए। धर्मसंग्रह भा. 1, पृ. 257 52. विधिमार्गप्रपा, पृ.-21 53. श्री श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र-प्रबोधटीका, भा.-3, पृ.-547
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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