SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...307 जगभावविअक्खण, अट्ठावय-संठविय-रूव-कम्मट्ठ-विणासण, चउवीसंपि जिणवर जयंतु अप्पडिहय सासण ॥1॥ कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं, पढम संघयणि, उक्कोसय सत्तरिसय, जिणवराण विहरंत लब्भइ, नव कोडिहिं केवलिण, कोडि सहस्स नव साहु गम्मइ, संपइ जिणवर बीस मुणि बिहुं कोडिहिं वरनाण समणह कोडी सहस्स दुअ, थुणिज्जइ निच्च विहाणि ।।2।। जयउ सामिय ! जयउ सामिय ! रिसह सतुंजि उज्जिति पहु नेमिजिण, जयउ वीर संच्चउरि मंडण भरूअच्छहिं मुणिसुव्वय, मुहरिपास दुह दुरिय खंडण, अवर विदेहिं तित्थयरा, चिहुं दिसि विदिसि जं केवि तीआणागय संपइय वंदूं जिण सव्वेवि ।।3।। सत्ताणवइ सहस्सा लक्खा छपन्न अट्ठ कोडीओ। बत्तीस सयबासिआइं, तिअलोए चेइए वंदे ॥4॥ पनरस कोडीसयाई, कोडी बायाललक्ख अडवन्ना। छत्तीस सहस असिइ, सासय बिंबाई पणमामि ।।5।। अचलगच्छीय आम्नाय में चैत्यवंदन के रूप में निम्न सूत्र बोला जाता हैजय-जय महाप्रभु, देवाधिदेव सर्वज्ञ श्री वीतराग देव।। मुह दीर्छ परमेसर, सुंदर सोम सहाव।। भूरि भवंतर संचिओ, नाट्ठो सो सवि पाव।। जे में पाप क्रियां बालपणे अहवा अन्नाणे।। अण भवंतर सो सो खंड ज्यो परमेसर।। तुह मुह दीर्छ सिरिपासजिणेसर।। पास पहु पसाओ करी, विनतडी अवधार॥ संसारडो बिहामणो, स्वामी आवागमण निवार।। हत्थडा ते सुलक्खणा, जे जिनवर पूजंत। एके पुण्णे बाहिरा, सो परधर काम करंत।। कवणे वाडी वावीयां, कवणे गुंथ्यां कूल।। कवणे जिनवर चढ़ावीयां, भवसरीसां मूल।। वाडी वेलो महोरीयो, सोवन कूप लीखेण।। पास जिणेसर पूजिये, पंचे अंगुलीएण। दो धोला दो सामला, दोरत्तोपलवन्न। मरगयवन्ना दुन्नि जिण, सोलस कंचनवन्न।। नियनियमान कराविया, भरहेस नयणानंद।। ते मे भावे वंदिया, ए चोबीसे जिणंद।। वत्थुछंद- कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं पढमसंघयणि, उक्कोसय सत्तरिसय, जिणवराण विहरंत लब्भइ, नवकोडिहिं केवलीण। कोडिसहस्स नव साहु गम्मइ, संपइ जिणवर वीस मुणी, बिहु कोडीहिं वरनाण, समणह कोडीसहस्स दुअ, थुणिसुं नेच्च विहाण॥ जयउ सामी जयउ सामी, रिसह सिरिसतुंजि, उज्जंत पहनेमिजिण, जयउवीर सच्चउरिमंडण, भरूअच्छेहिं मुणिसुव्वय, मुहरिपास दुहदुरियखंडण, अवरविदेहिं तित्थयरा, चिहुं दिसि विदिसि जं केवि तीआणागयसंपइय, वंदू जिण सव्वेवि।। सत्ताणवइ सहस्सा लक्खा छप्पन्न अट्ठ कोडीओ।। पंचसयं चउत्तीसा, तिअलोए चेइए वंदे।।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy