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306... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
सम्मत्तंमिउलद्धे, विमाणवज्जं न बंधये आउं। जईवि न सम्मत्त जढो, अहव न बद्धाउओ पुव्विं ॥3॥
दिवसे दिवसे लक्खं, देइ सुवन्नस्स खंडियं ।
ऐगो ऐगो पुण सामाइअं, करेइ न पहुप्पये तस्स ||4||
निंद पसंसासु समो, समोअ माणव माणुकारिसु । समसयण परिअणमणो, सामाइअ संगओ जीवो ||5||
40. पंचप्रतिक्रमणसूत्र विधिसहित (पार्श्वचन्द्रगच्छीय), पृ.-234-38
41. स्वाध्यायसमुच्चय (त्रिस्तुतिकगच्छ), पृ. - 225-28 42. जैनतत्त्वप्रकाश, पृ. -660-62
43. तपागच्छ आदि कुछ परम्पराओं में उग्घाड़ा पौरूषी के स्थान पर 'बहुपडिन्ना पौरूषी' शब्द बोलते हैं।
44. विधिमार्गप्रपा, पृ. -19
45. वही, पृ. -19-20
46. परम्परागत सामाचारी के अनुसार पौषधव्रती हो या उपधानवाही अथवा एकासना आदि का प्रत्याख्यान पूर्ण करनेवाला साधक हो उनके लिए आहार- पानी ग्रहण करने के पूर्व और पश्चात् चैत्यवन्दन करने का विधान है। वर्तमान की श्वेताम्बरमूर्तिपूजक परम्पराओं में स्व-स्व सामाचारी के अनुसार एक निर्धारित चैत्यवंदनसूत्र बोला जाता है।
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• खरतरगच्छ के अनुसार निम्न चैत्यवंदनसूत्र बोला जाता है
जयउ सामिय ! जयउ सामिय ! रिसहसतुंजि उज्जिंति पहुनेमिजिण, जयउ वीर सच्चउरि मंडण ।।1।। भरूअच्छहिं मुणिसुव्वय, मुहरिपास दुह दुरिय खंडण, अवर विदेहिं तित्थयरा, चिहुं दिसि विदिसि जं केवि तीआणागय संपइय वंदु जिण सव्वेवि ||2|| कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं पढम संघयणि, उक्कोसय सत्तरिसय, जिणवराण विहरंत लब्भइ, नव कोडिहिं केवलिण कोडि सहस्स नव साहु गम्मइ, संपइ जिणवर बीस मुणि बिहुं कोडिहिं वरनाण समणह कोडी सहस्स दुअ, थुणिज्जइ निच्चविहाणि ||3|| सत्ताणवइ सहस्सा लक्खा छपन्न अट्ठ कोडीओ। चउसय छायासीया तिल्लुक्के चेइए वंदे ॥4॥ वंदे नवकोडिसयं, पणवीसं कोडिलक्ख तेवन्ना। अट्ठावीस सहस्सा, चउसय अट्ठासीया पडिमा ||5|| तपागच्छ-परम्परा में प्रचलित चैत्यवंदन सूत्र यह हैजगचिंतामणि जगनाह, जगगुरू जगरक्खण, जगबंधव, जगसत्थवाह,