________________
300... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... वल्लभसूरिकृत पौषधविधिप्रकरण में रात्रिसंस्तारक पाठ सम्बन्धी एक भी गाथा पढ़ने को नहीं मिली है।
रात्रिसंस्तारक विधि करते समय मूलत: कितनी गाथाएँ बोलनी चाहिए तथा इसमें गाथा पाठ को लेकर कब, कैसे परिवर्तन आया? प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई है, किन्तु शोध के आधार पर इतना कहना शक्य है कि विक्रम की 10 वीं शती तक के ग्रन्थों में रात्रिकसंस्तारक सम्बन्धी लगभग एक भी गाथा पाठ नहीं है। इसमें गाथा पाठ की वृद्धि क्रमश: हुई है और ये गाथाएँ प्रकीर्णक ग्रन्थ या प्रतिक्रमण आदि सूत्रों से उद्धृत की गई मालूम होती है।
यदि हम वैदिक एवं बौद्ध धर्म की अपेक्षा से विचार करें, तो जैन- परम्परा की भांति बौद्ध-परम्परा में भी उपोसथव्रत गृहस्थ का अनिवार्य कृत्य माना गया है। इस व्रत को आचरित करने की तिथियाँ भी दोनों में एक समान ही बतलाई गई हैं।
सुत्तनिपात में कहा गया है कि प्रत्येक पक्ष की चतुर्दशी, पूर्णिमा, अष्टमी और प्रतिहार्यपक्ष को इस उपोसथव्रत का श्रद्धापूर्वक परिपालन करना चाहिए।85
बौद्ध-परम्परा में उपोसथव्रत के जो नियम आदि निर्धारित किए गए हैं, वे ही नियम लगभग जैन-परम्परा में निर्दिष्ट हैं। बौद्ध उपोसथव्रतधारी के लिए अष्टशील-आठ प्रकार के नियम पालन करने का विधान किया गया है। जो गृहस्थ उपोसथव्रत को धारण करता है, उसे निम्न आठ प्रकार के आचारों का निर्दोष पालन करना होता है। वे अष्टशील ये हैं- 1. प्राणीवध नहीं करना। 2. चोरी नहीं करना। 3. असत्य नहीं बोलना। 4. मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करना। 5. ब्रह्मचर्य का पालन करना। 6. रात्रिभोजन नहीं करना। 7. माल्य एवं गंध का सेवन नहीं करना और 8. काष्ठपट्ट या जमीन पर शयन करना।
इन नियमों की तुलना जैन-परम्परा के पौषधव्रत से करने पर यह अन्तर प्रतीत होता है कि बौद्ध-परम्परा में उपोसथ व्रत में आहार करने की छूट है, केवल रात्रिभोजन का निषेध किया गया है, जबकि जैन परम्परा के पौषधव्रत में आहार करने एवं आहार न करने सम्बन्धी दोनों ही विधियाँ प्रचलित हैं। जब जैन गृहस्थ पौषधव्रत की दीर्घकालीन साधना करता है या उपधान तप