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________________ पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...295 मुख करके कर्म निर्जरा निमित्त बारह-बारह लोगस्स का कायोत्सर्ग करते हैं।61 पायच्छंदगच्छीय परम्परा में यह विधि तपागच्छ आम्नाय के अनुसार ही की जाती है। मात्र भिन्नता यह है कि इसमें रात्रिसंस्तारक पाठ की चौदह गाथा बोलते हैं और इस पाठ के बीच सात लाख पृथ्वीकाय का सूत्र बोलते हैं।62 त्रिस्तुतिक परम्परा में यह विधि तपागच्छीय सामाचारी के अनुसार की जाती है।63 स्थानकवासी, तेरापंथी, दिगम्बर आदि परम्पराओं में शयन के पूर्व इस प्रकार की कोई विधि नहीं होती है, केवल संस्तारक एवं शरीर की प्रमार्जना कर तथा अंगोपांगों को संकुचित कर निद्राधीन होते हैं। पौषध पारने की विधि जैन अवधारणा में पौषधव्रत का सामान्यकाल आठ प्रहर स्वीकृत रहा है। इस व्रत की अवधि पूर्ण होने पर उससे निवृत्त होने के लिए एक क्रिया की जाती है। उसके बाद ही वह व्रती श्रावक गृहस्थ कार्यों को करने का अधिकारी बनता है। विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों में पौषध से निवृत्त होने की क्रियाविधि का जो स्वरूप उपलब्ध है, वर्तमान में प्राय: वही विधि प्रवर्तित है। खरतरगच्छ परम्परानुसार पौषध पूर्ण करने का समय हो जाने पर पौषधवाही एक खमासमण पूर्वक ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। • फिर एक खमासमण देकर-'इच्छा. संदि. भगवन्! पौषध पारवा मुँहपत्ति पडिलेहूँ' 'इच्छं' कहकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। • फिर एक खमासमण देकर पौषध पारने वाला कहे-'इच्छा. संदि. भगवन्! पोसहं पारावेह?' 'इच्छं'। तब गुरू कहे-'पुणो वि कायव्वो'। पुन: साधक दूसरा खमासमण देकर कहे'पोसहं पारेमि'। तब गुरू कहे- 'आयारो न मोतव्वो'। • तदनन्तर पौषधव्रती खड़े होकर तीन बार नमस्कारमन्त्र बोलें। ___ • उसके बाद सामायिक पूर्ण करने हेतु मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। फिर पूर्ववत् दो खमासमण-पूर्वक 'सामाइयं पारावेह' 'सामाइयं पारेमि'ये आदेश लेकर तीन बार नमस्कारमन्त्र बोलें। . उसके बाद मस्तक को भूमितल से स्पर्शित करते हुए ‘भयवं दसण्णभद्दो सूत्र' बोलें और पौषध में लगे हुए दोषों का मिथ्यादुष्कृत दें।64
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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