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294... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... करने वाला श्रावक शारीरिक चिन्ताओं से निवृत्त होकर दो खमासमणपूर्वक मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करके शक्रस्तव बोलें। फिर भूमि का प्रमार्जन कर संथारा बिछाएं। फिर शरीर का प्रमार्जन कर उस पर बैठ जाएं। उसके बाद तीन नमस्कारमन्त्र बोलकर 'संथारापाठ' बोलें।58
वर्तमान में प्रचलित रात्रिकसंथारा की विधि इस प्रकार है
खरतरगच्छ की परम्परानुसार सर्वप्रथम एक खमासमण पूर्वक 'इच्छा. बहुपडिपुन्ना पौरूषी, इच्छं' कहें। फिर एक खमासमण पूर्वक ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। . फिर एक खमासमण पूर्वक 'इच्छा. संदि. भगवन्! राइअ संथारा मुँहपत्ति पडिलेहूं ?' 'इच्छं' कहकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें। • फिर एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! राइअ संथारा संदिसाहुं ?' 'इच्छं' कहकर पुन: एक खमासमण देकर 'इच्छा. राइअ संथारा ठाऊं?' 'इच्छं' बोलें। • फिर चैत्यवंदन के रूप में चउक्कसाय., णमुत्थुणं., जावंति चेइआई., जावंत केवि साहू., उवसग्गहरं. और जयवीयराय सूत्र कहें। • फिर संस्तारक (ऊनी आसन) के ऊपर बैठकर 'निसीहि निसीहि निसीहि, नमो खमासमणाणं गोयमाइणं महामुणिणं'इतना पाठ बोलकर तीन नमस्कारमन्त्र गिनें और तीन बार ‘करेमिभंते' सूत्र बोलें। • उसके बाद रात्रिकसंस्तारक-पाठ की चौबीस गाथाएँ बोलें। • तत्पश्चात् सात नमस्कारमन्त्र गिनकर सो जाएं। निद्रा न आए, तब तक शुभध्यान में रहें। • दूसरे दिन प्रभात काल में रात्रिक प्रतिक्रमण करें, प्रतिलेखना करें तथा देववन्दन और गुरूवन्दन कर पौषध को पूर्ण करें।59
तपागच्छ परम्परा में राईसंथाराविधि पूर्ववत् जाननी चाहिए। मात्र अन्तर यह है कि चउक्कसाय का चैत्यवंदन करने के बाद मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करते हैं और रात्रिसंस्तारक पाठ की सत्तरह गाथा बोलते हैं।60
. अचलगच्छ परम्परा में यह विधि प्राय: तपागच्छ-आम्नाय के समान की जाती है। विशेष यह है कि 1. रात्रिकसंथारा पाठ की बीस गाथा बोलते हैं 2. उसके बाद सात नमस्कारमन्त्र गिनकर पौषधव्रती कहता है- 'इच्छा. संदि. भगवन्! किं कायव्वं' तब गुरू कहते हैं- 'सज्झायपाठ भणियव्वं, गणियव्वं, नो पमायव्वं।' शिष्य कहता है- 'यथाशक्ति' 3. उसके बाद सर्वमंगल की गाथा बोलते हैं 4. फिर पूर्वदिशा और दक्षिणदिशा की ओर