SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 296... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक तपागच्छ परम्परा में पौषध पारने की विधि पूर्ववत् है। विशेष अन्तर यह है कि 1. ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करने के पश्चात् चउक्कसाय का चैत्यवंदन करते हैं, फिर आगे की विधि की जाती है 2. तीन नमस्कारमन्त्र बोलने की जगह एक नमस्कारमन्त्र कहते हैं 3. पौषध पारते समय सागरचंदोकामो 65 नाम का सूत्र बोलते हैं और सामायिक पारते समय सामाइयवयजुत्तो" बोलते हैं। अंचलगच्छ परम्परा में ईर्यापथ का प्रतिक्रमण कर एवं पौषध पूर्ण करने का आदेश लेकर 'सागरचंदोकामो' की तीन गाथा बोलते हैं। 67 पायच्छंदगच्छ परम्परा में पौषध पारने की विधि तपागच्छ- आम्नाय के समान ही है। अन्तर यह है कि 'सागरचंदोकामो' की पाँच गाथा बोलते हैं 8 और ‘चउक्कसाय' का चैत्यवंदन नहीं करते हैं। 69 त्रिस्तुतिक परम्परा पौषध पारने की विधि के सम्बन्ध में तपागच्छ सामाचारी का ही अनुसरण करती हैं। 70 स्थानकवासी एवं तेरापंथी परम्पराओं में पौषध पारने की विधि इनके मत में प्रचलित सामायिक पारने की विधि के अनुसार ही है। मात्र 'एयस्स नवमस्स' पाठ के स्थान पर पौषधव्रत का अतिचार पाठ बोला जाता है। 71 उपर्युक्त विवरण से यह प्रतिध्वनित होता है कि पौषधग्रहण विधि का स्वरूप सामाचारी-भेद को छोड़कर सभी परम्पराओं में प्राय: समान ही है, किन्तु पौषध पारने के सूत्रपाठ भिन्न-भिन्न हैं। उनमें भी खरतरगच्छ के सिवाय मूर्तिपूजक की शेष परम्पराओं के सूत्रपाठ लगभग समान हैं। सूत्रपाठ सम्बन्धी यह अन्तर भी अपनी-अपनी सामाचारी विशेष के कारण ही है, मूलविधि सभी परम्पराओं में प्राय: समान है। तुलनात्मक विवेचन यदि पौषध-विधि का तुलनापरक अध्ययन करते हैं, तो जिनवल्लभसूरिकृत 'पौषधविधिप्रकरण' (12 वीं शती), पुरन्दराचार्य विहित ‘सामाचारीप्रकरण’, ‘तिलकाचार्यसामाचारी' ( 12 वीं शती), जिनप्रभसूरिकृत ‘विधिमार्गप्रपा’ (12 वीं शती) आदि रचनाएँ मुख्य रूप से आधार बनती हैं। इनके सिवाय अन्य वैधानिक - ग्रन्थों में इस विधि का स्पष्ट स्वरूप लगभग देखने को नहीं मिलता है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy