SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...291 हैं तथा एक खमासमणपूर्वक पौषधशाला प्रमार्जन करने की अनुमति लेते हैं। शेष विधि लगभग समान है।55 त्रिस्तुतिक परम्परा में सन्ध्याकालीन प्रतिलेखना की विधि लगभग तपागच्छ के समान ही करते हैं। चौबीसमांडला विधि ___ यह विधि दैवसिकप्रतिक्रमण के पूर्व की जाती है। पौषधवाही एवं उपधानवाही के लिए यह कृत्य आवश्यक माना गया है। मूलत: यह विधान प्रतिलेखित भूमि पर मल-मूत्र परिष्ठापन करने से सम्बन्धित है। जैन विचारणा के अनुसार इस विधि में उपाश्रय से दूर, मध्य एवं निकट-इस प्रकार चौबीस स्थानों की प्रतिलेखना की जानी चाहिए। प्राचीनकाल में यह विधि मूलरूप से प्रवर्तित थी, किन्तु आज निर्दिष्ट स्थानों को प्रतिलेखित करने की विधि नहीवत् रह गई है उसके प्रतीक रूप में अब तो मात्र चरवले को उस-उस दिशा की ओर घुमाया जाता है और घुमाने की क्रिया को ही प्रतिलेखित किया हुआ मान लेते हैं। यह प्रक्रिया कहाँ तक सही और सार्थक है? गीतार्थ मुनियों के लिए अवश्य मननीय है। हमें इस विधि के संबंध में स्पष्ट उल्लेख सर्वप्रथम विधिमार्गप्रपा में प्राप्त होता है। विधिप्रपाकार ने भी इस सन्दर्भ में मात्र इतना ही कहा है कि मल-मूत्र योग्य चौबीस स्थंडिल भूमियों की प्रतिलेखना करनी चाहिए।56 वर्तमान में यह विधि इस प्रकार प्रचलित है • सर्वप्रथम स्थापनाचार्य के समक्ष खड़े होकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। • फिर एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! स्थंडिल पडिलेहुं?' 'इच्छं' कहकर खड़े हो जाएं। • तदनन्तर क्रमशः पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण इन चार दिशाओं के सम्मुख चरवले या रजोहरण की दसियों को करते हुए छ:छ: मांडला करें यानी पूर्वदिशा की ओर चरवला करते हुए छ: मांडला सम्बन्धी पाठ बोलें। इसी प्रकार शेष तीन दिशाओं की ओर भी चरवला दिखाते हुए छ:छ: मांडला पाठ बोलें। • किस स्थान विशेष के लिए कौन-सा मांडला पाठ बोला जाना चाहिए? और उनका क्रम क्या है? इसे निम्न तालिका के आधार पर समझना चाहिए।57
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy