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________________ 292... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक निम्न छः मांडला संथारा ( शयनस्थान) के समीप में करना चाहिए1. आघाडे आसन्ने उच्चा (समीप में ) ( मलोत्सर्ग के (मूत्रोत्सर्ग के पासवणे अणहियासे (असह्य होने निमित्त) निमित्त) पर) पासवणे अहि उच्चारे पासवणे पासवणे (आपवादिक स्थिति के समय) 2. आघाडे 3. आघाडे 4. आघाडे अणहियासे 5. आघाडे दूरे पासवणे 6. आघाड़े दूरे अहिया निम्न छः मांडला पौषधशाला ( उपाश्रय) के मुख्य द्वार के भीतरी स्थानविशेष में करना चाहिए 1. घ आसन्ने पासवणे 2. आघाडे 3. आघाडे आसन्ने मज्झे मज्झे 2. अणाघाडे 3. अणाघाडे 4. अणाघाडे आसन्ने उच्च पासवणे उच्चारे आसन्ने पासवणे | मज्झे उच्चारे 4. आघाडे | मज्झे पासवणे अहिया से 6. आघाडे दूरे उच्चारे पासवणे 6. आघाड़े दूरे पासवणे अहियासे निम्न छः मांडला उपाश्रय द्वार के बाहर ( नजदीक भूमि को आश्रित करके) करना चाहिए1. अणाघाडे आसन्ने उच्चारे पासवणे पासवणे | मज्झे उच्चारे | मज्झे पासवणे अणहियासे पासवणे अहिया अणहियासे पासवणे अहिया अहिया अहियासे ( सहन होने पर) अहिया अहियासे अणहियासे (खास कठिनाई न हो, उस समय) अहिया
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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