________________
पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...289 एकान्तस्थल में परिष्ठापित करें। फिर स्थापनाचार्य के सम्मुख खड़े होकर प्रमार्जना आदि क्रियाओं में लगे हुए दोषों की शुद्धि-निमित्त ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। • फिर पूर्ववत् तेरह बोलपूर्वक स्थापनाचार्य की प्रतिलेखना करें और उसे यथास्थान स्थापित करें।51
• तदनन्तर गुरू के समीप या स्थापनाचार्य के समीप खड़े होकर एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! उपधि मुँहपत्ति पडिलेहुँ? 'इच्छं' कहकर उपधि की प्रतिलेखना करने के निमित्त मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें।
सज्झाय विधि- • उसके बाद एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झाय संदिसावेमि?' 'इच्छं' कहकर पुन: दूसरा खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झायं करेमि?' 'इच्छं- ऐसा बोलकर एक नमस्कारमन्त्र गिनें। यदि गुरू भगवन्त हो, तो 'धम्मोमंगल' पाठ की पाँच गाथा सुनें। यहाँ स्वाध्याय की क्रिया सूत्रपौरूषी नियम के परिपालनार्थ की जाती है। नियम से चतर्थ प्रहर स्वाध्याय का माना गया है। यदि पौषध व्रती पूर्ण प्रहर तक स्वाध्याय न भी कर पाए, तो कम से कम नियम-धर्म या विधि-धर्म पूरा करने के लिए नमस्कारमन्त्र या निर्दिष्ट सूत्रपाठ अवश्य बोलें।
प्रत्याख्यान ग्रहण- यदि चौविहार उपवास किया हो, तो कोई भी प्रत्याख्यान लेने की जरूरत नहीं है। तिविहार उपवास हो, तो 'पाणाहार' का प्रत्याख्यान लेना चाहिए। एकासना आदि तप किया हो, तो द्वादशावर्त्तवन्दन देकर गुरूमुख से पाणहार का प्रत्याख्यान ग्रहण करें।52
उपधि प्रतिलेखना- • उसके बाद एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! उपधि थंडिला पडिलेहणं संदिसावेमि?' 'इच्छं' कहकर, पुनः दूसरा खमासमण देकर "इच्छा. संदि. भगवन् ! उपधि थंडिला पडिलेहणं करेमि?' 'इच्छं' कहें। तदनन्तर पुन: दो खमासमण पूर्वक 'बइसणं संदिसावेमि' 'बइसणं ठामि' 'इच्छं' कहकर वस्त्र-कंबल आदि की प्रतिलेखना करें। ____यहाँ अंग एवं उपधि-प्रतिलेखना के क्रम में यह विशेष है कि यदि पौषधव्रती उपवास किया हुआ हो, तो वस्त्र-कंबल आदि समस्त उपधि की प्रतिलेखना करने के बाद कंदोरा और धोती की प्रतिलेखना करें तथा