________________
288... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... पौषधशाला में प्रवेश करें। फिर स्थापनाचार्य के सम्मुख खड़े होकर एक खमासमणपूर्वक ईर्यापथिक का प्रतिक्रमण करते हुए गमनागमन एवं स्थंडिल विषयक लगे हुए दोषों की आलोचना करें।49 उसके बाद दिन का अन्तिम प्रहर न आ जाए, तब तक शुभ स्वाध्याय आदि में प्रवृत्त रहें।।
यह विधि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय की सभी परम्पराओं में प्रायः समान ही है। स्थानक एवं तेरापंथ परम्परा में भी तत्सम्बन्धी यही विधि है। सन्ध्याकालीन प्रतिलेखन विधि
यह विधि दिन के तीसरे प्रहर के अन्त में या चतुर्थ प्रहर के प्रारम्भ में की जाती है। इसे मनियों, पौषधधारियों एवं उपधानवाहियों के लिए आवश्यक मानी गई है। ___ यह विधि विधिमार्गप्रपा के अनुसार एवं सामान्य अन्तर के साथ वर्तमान परम्परा में इस प्रकार प्रचलित है___अंग प्रतिलेखन- • खरतरगच्छीय परम्परानुसार सर्वप्रथम पौषधवाही एक खमासमण देकर 'इच्छाकारेण बहुपडिपुन्नापोरिसी? इच्छं' ऐसा प्रकट स्वर में बोलें। • उसके बाद एक खमासमणपूर्वक आदेश लेकर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। • फिर एक खमासमणपूर्वक वन्दन कर-'इच्छा. संदि.! पडिलेहणं पोसहसालं पमज्जेमि (पौषधशाला प्रमाणू)' 'इच्छं' कहें। उसके बाद उपवासी श्रावक प्रात:कालीन प्रतिलेखना के समान क्रमश: मुखवस्त्रिका, चरवला, आसन (तपागच्छ आदि परम्परानुसार क्रमश: मुखवस्त्रिका, आसन, चरवला)-इन तीन की एवं एकासनादि किया हुआ श्रावक इन तीन के सिवाय कंदोरा और धोती-पाँच की प्रतिलेखना करें।50 श्राविका क्रमश: मुखवस्त्रिका, चरवला, कटासन, साड़ी, कंचुकी और अधोभागीय वस्त्र(पेटीकोट) की प्रतिलेखना करें। ___ खरतरगच्छ की वर्तमान सामाचारी में एक खमासमण पूर्वक 'अंगपडिलेहण' का आदेश लेकर पूर्वोक्त उपकरणों की प्रतिलेखना करते हैं, किन्तु विधि मार्गप्रपा में पृथक् से 'अंगपडिलेहण' के आदेश का उल्लेख नहीं है।
__ पौषधशाला प्रमार्जन- • प्रतिलेखना करने के पश्चात् पौषधशाला का दंडासन से प्रमार्जन करें। काजा(कूड़ा करकट आदि) को सूपडी में लेकर उसे