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________________ पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन 279 यह पौषधग्रहणविधि खरतरगच्छ की सामाचारी के अनुसार कही गई है। अन्य परम्पराओं में पौषधविधि का स्वरूप यथा जानकारी इस प्रकार है तपागच्छ परम्परा में पौषधग्रहण की विधि लगभग पूर्ववत् जाननी चाहिए। कुछ भिन्नताएँ इस प्रकार हैं- 1. इनमें 'पौषधदंडक' को एक बार उच्चारित करते हैं 2. प्रतिलेखन में 'अंगपडिलेहण' करने का आदेश नहीं लेते हैं 3. वसतिप्रमार्जनविधि करने के बाद देववंदन करते हैं, फिर सज्झाय का आदेश लेते हैं जबकि खरतरगच्छ - परम्परा में प्रथम क्रम पर सज्झाय विधि, दूसरे क्रम पर उग्घाड़ापौरूषीविधि और तीसरे क्रम पर देववन्दन विधि होती है 34 4. स्वाध्याय के रूप में 'मन्नहजिणाणं 35 का पाठ बोलते हैं। अचलगच्छीय परम्परा में पौषधग्रहणविधि का यह स्वरूप है 1. प्रथम 'सामायिकग्रहणविधि' के अनुसार 'करेमि भंते' तक वही विधि करते हैं, केवल 'सामायिक' शब्द के स्थान पर 'पौषध' शब्द बोलते हैं, 'करेमिभंते' के स्थान पर 'पौषधदंडक' का उच्चारण करते हैं 2. फिर खमासमण पूर्वक 'पोसह सामायिक संदिसाहूं' 'पोसह सामायिक ठाऊं' - ये दो आदेश लेकर, पौषध-सामायिक में स्थिर होने के लिए दाहिने हाथ को नीचे स्थापित कर तीन नवकार गिनते हैं। फिर खड़े होकर एक बार नमस्कारमन्त्र बोलकर 'करेमिभंते' का पाठ उच्चारित करते हैं 3. फिर दो-दो खमासमणपूर्वक क्रमशः ‘बइसणं' और 'सज्झायं' का आदेश लेते हैं तथा उत्कटासन की मुद्रा में बैठकर एवं दोनों हाथ जोड़कर स्वाध्याय के निमित्त तीन नवकारमन्त्र बोलते हैं 4. फिर दो खमासमण पूर्वक 'बहुवेलं' का आदेश लेते हैं। प्रात:कालीन प्रतिलेखना विधि इस प्रकार करते हैं- 5. प्रथम एक खमासमण देकर ‘राई पडिलेहण संदिसाहूं', पुन: एक खमासमण देकर 'राई पडिलेहण करूँ' - ये दो आदेश लेकर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करते हैं 6. फिर आदेश पूर्वक उत्तरासंग 36 के छेड़े का (वस्त्र के एक भाग का) प्रतिलेखन कर क्रमशः उत्तरासंग, चरवला, कंदोरा, धोती, कटासन-इन पाँच की प्रतिलेखना करते हैं 7. फिर उस भूमि का प्रमार्जन कर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करते हैं 8. तदनन्तर तेरह बोलपूर्वक स्थापनाचार्य की प्रतिलेखना करते हैं 9. फिर दो आदेशपूर्वक उपधि की प्रतिलेखना करते हैं, वहाँ के स्थान का काजा
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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