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278... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... पडिलेहणं करेमि?' 'इच्छं' कहकर क्रमश: मुखवस्त्रिका (50 बोल) आसन(25 बोल), चरवला(10बोल), कंदोरा(10 बोल), धोती(25 बोल) की प्रतिलेखना करें। यहाँ श्राविकाएँ क्रमश: मुखवस्त्रिका, आसन, पेटीकोट, ब्लाउज, साड़ी की प्रतिलेखना करें।
* वर्तमान में 'पडिलेहण' के दो आदेश लेकर मुखवस्त्रिका, आसन एवं चरवला की प्रतिलेखना करते हैं और 'अंगपडिलेहण' के दो आदेश लेकर कंदोरा और धोती की प्रतिलेखना करते हैं।
• तदनन्तर पौषधवाही एक खमासमण देकर 'इच्छाकारी भगवन् ! पसायकारी पडिलेहण पडिलेहावोजी, इच्छं' कहकर स्वयं के स्थापनाचार्यजी हों, तो तेरह बोल से उसकी प्रतिलेखना करें। यदि गुरू के स्थापनाचार्य हो, तो पूर्वप्रतिलेखित होने से पुन: प्रतिलेखन करने की जरूरत नहीं रहती है।
• उसके बाद पुनः एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! उपधि मुँहपत्ति पडिलेहूं?' 'इच्छं' कहकर उपधि प्रतिलेखन के निमित्त मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। फिर एक खमासमणपूर्वक 'इच्छा. संदि. भगवन् ! ओहि पडिलेहण संदिसाहं? 'इच्छं' कहकर क्रमश: कामली (25 बोल), उत्तरासंग-दुपट्टा (25 बोल) आदि वस्त्रों की प्रतिलेखना करें। सायंकालीन प्रतिलेखना में प्रथम उत्तरासंग, फिर कंबल आदि इस क्रम से प्रतिलेखना करें।
• तदनन्तर पौषधवाही दंडासन द्वारा पौषधशाला का प्रमार्जन करें। यदि प्रमार्जन करते हुए जीव-जंतु निकले हों या धान्यादि-कण दिखे हों, तो उनका एकान्तस्थल में विधिपूर्वक परित्याग करें।
• तत्पश्चात् एक खमासमणपूर्वक पूर्ववत् ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। फिर एक खमासमणपूर्वक 'इच्छा. संदि. भगवन्! सज्झाय संदिसाहुं?' 'इच्छं' पुनः दूसरा खमासमण देकर 'इच्छा संदि. भगवन्! सज्झाय करूँ?' 'इच्छं' कहकर स्वाध्याय में प्रवृत्त बनें।
* यहाँ वर्तमान की खरतरगच्छ-परम्परा में स्वाध्याय का आदेश लेकर एक नमस्कारमन्त्र पूर्वक उपदेशमाला33 की सज्झाय बोलते हैं। फिर अन्त में एक नमस्कारमन्त्र कहते हैं। यदि गुरू का सान्निध्य हों, तो 'धम्मोमंगल' की पाँच गाथा सज्झायरूप में सुनते हैं।