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________________ पौषव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ... 277 विशेष निन्दा करता हूँ और अपनी आत्मा को सावद्य पापों से दूर करता हूँ। सामायिकग्रहण - विधि उसके बाद एक खमासमणपूर्वक 'इच्छा. संदि. भगवन्! सामायिक लेवा मुँहपत्ति पडिलेहूं?' 'इच्छं' कहकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। फिर एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! सामायिक संदिसाहूं?" 'इच्छं' कहें। पुनः एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन् सामायिक ठाऊं?' 'इच्छं' कहें। फिर एक खमासमण देकर तीन नमस्कारमन्त्र बोलें और पौषध के समान ही तीन बार 'सामायिक लेने का पाठ' 32 उच्चारित करें। · • तदनन्तर दो खमासमणपूर्वक वर्षाऋतु का समय हो, तो कटासन का आदेश लें तथा शेष आठ मास का समय हो, तो पादप्रोंछन का आदेश लें। उसके बाद रात्रिक प्रतिक्रमण का समय न हों, तब तक अप्रमत्तभाव से स्वाध्याय में रत रहें। * वर्तमान परम्परा में 'पादप्रोंछन' का आदेश लेने की प्रवृत्ति लुप्त सी हो गई है। प्रथम 'सज्झाय' का आदेश लेते हैं। फिर 'कटासन' का आदेश लेते हैं। इसके बाद दो खमासमण पूर्वक 'बहुवेलं' का आदेश भी लेते हैं, किन्तु विधिमार्गप्रपा जैसे ग्रन्थों में इसका उल्लेख नहीं है। • पूर्वोक्त विधिपूर्वक पौषधग्रहण करने के बाद प्रतिक्रमण का समय हो जाए, तो प्रात:कालीन प्रतिक्रमण करें। * आजकल प्रायः पौषध करने वाले भाई-बहिन सुबह जल्दी उठकर रात्रिक प्रतिक्रमण कर लेते हैं। उसके बाद उपाश्रय जाकर गुरू के समक्ष पौषधव्रत ग्रहण करते हैं, किन्तु शास्त्रोक्त नियम के अनुसार पौषधव्रत ग्रहण करने के पश्चात् रात्रिक प्रतिक्रमण करना चाहिए। कई जन मूलविधि के अनुसार भी प्रतिक्रमण आदि क्रियाएँ करते हैं। प्रातः कालीन प्रतिलेखन - विधि • विधिमार्गप्रपा के अनुसार पौषधवाही प्रतिलेखन का समय हो जाने पर एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि भगवन्! अंग पडिलेहणं संदिसावेमि ?' 'इच्छं' पुनः दूसरा खमासमण देकर 'इच्छा. सदि. भगवन्!
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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