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पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...273 आदि निकालने का वस्त्रखंड 9. ऊनी शाल 10. दंडासन 11. माला 12. पुस्तक 13. ठवणी आदि। ___ रात्रि अथवा अहोरात्रि पौषध धारण करने वाले गृहस्थ के लिए अग्रलिखित उपकरण मुख्य कहें गए हैं
___ 1. उपर्युक्त सभी प्रकार के उपकरण। इसके सिवाय 2. उत्तरपट्ट (बिछाने का सूती वस्त्र) 3. संथारा (बिछाने का ऊनी वस्त्र) 4. कुंडल (रूई का फोया) 5. बड़ीनीति के लिए लोटा, चूना डाला हुआ पानी आदि। पौषधव्रत की ऐतिहासिक अवधारणा
जैन परम्परा में सावधकारी-प्रवृत्तियों से निवृत्ति पाने के लिए एवं मुनि जीवन की चर्या का आस्वाद प्राप्त करने के लिए पौषधव्रत का विधान है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि पौषधव्रती श्रावकधर्म का सच्चा उपासक है तथा श्रावकधर्म की पवित्र आराधना करने का इच्छुक है।
जैन धर्म में पौषधव्रती को श्रमणतुल्य माना गया है। कारण कि पौषधव्रती की समस्त चर्याएँ एवं क्रियाकलाप मुनि जीवन की भाँति ही सम्पन्न होते हैं। इस व्रत का महत्त्व प्राचीनकाल से लेकर आज तक यथावत देखा जाता है। कालप्रभाव से भले ही इस व्रत के आराधक गिनती मात्र रह गए हों, किन्तु साधना की दृष्टि से अब भी यह व्रत जनसाधारण के लिए उपासना का केन्द्र बना हुआ है। अन्य व्रतों की अपेक्षा इस व्रत में त्याग की कसौटी विशेष रूप से होती है। ___ पौषधव्रत जैन परम्परा की भाँति बौद्ध-परम्परा में भी प्रारम्भ से ही गृहस्थ उपासक का आवश्यक कर्त्तव्य रहा है। दोनों में इसे स्वीकार करने की तिथियाँ भी एक ही कही गई हैं। सुत्तनिपात में कहा गया है कि प्रत्येक पक्ष की चतुर्दशी, पूर्णिमा, अष्टमी और प्रतिहार्यपक्ष में उपोसथव्रत सम्यक् रूप से करना चाहिए।22 उनमें उपोसथधारी के लिए निम्न नियमों का पालन करना जरूरी माना गया है जो प्राय: जैन-परम्परा के समान ही हैं।
1. जीव हिंसा नहीं करना। 2. चोरी नहीं करना। 3. असत्य नहीं बोलना। 4. मादकद्रव्यों का सेवन नहीं करना। 5. मैथुन-सेवन नहीं करना 6. रात्रि में विकाल-भोजन नहीं करना। 7. माल्य एवं गंध का सेवन नहीं करना। 8. काष्ठ