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________________ पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...269 पौषधव्रत के अठारह दोष जो व्रत धर्म की पुष्टि करता है, उसे पौषधव्रत कहते हैं अथवा अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा-रूप पर्वदिन धर्मवृद्धि के कारण होने से पौषध कहलाते हैं। इन पर्वदिनों में उपवास करना पौषधोपवास-व्रत है। यह व्रत चार प्रकार का है- 1. आहार पौषध 2. शरीर पौषध 3. ब्रह्मचर्य पौषध 4. अव्यापार पौषध। आहार का त्याग करके धर्म का पोषण करना आहारपौषध है। स्नान, उबटन, विलेपन, पुष्प, गन्ध, ताम्बूल, आभूषणरूप शरीर सत्कार का त्याग करना शरीरपौषध है। अब्रह्म(मैथुन) का त्याग कर कुशल अनुष्ठानों के सेवन द्वारा धर्मवृद्धि करना ब्रह्मचर्यपौषध है। कृषि, वाणिज्यादि सावध व्यापारों का त्याग कर धर्म का पोषण करना अव्यापारपौषध है। ___ इस पौषधव्रत में सामान्यत: अठारह प्रकार के दोषों की संभावनाएँ रहती है जो निम्न हैं 1. पौषध के निमित्त अधिक मात्रा में सरस आहार करना। वर्तमान में 'धारणा' करने-करवाने की परिपाटी इसी दोष से सम्बन्धित है। 2. पौषध की पूर्वरात्रि में मैथुन-सेवन करना। 3. पौषध के लिए नख, केश आदि का संस्कार करना। 4. पौषध के निमित्त वस्त्र धोना या धुलवाना। 5. पौषध के लिए शरीर-शुश्रुषा करना। 6. पौषध के निमित्त आभूषण पहनना। पौषधव्रत लेने के पहले दिन उक्त छ: कृत्यों को करने से पौषध दूषित होता है, इसलिए ये कृत्य नहीं करने चाहिए। 7. अव्रती से वैयावृत्य करवाना जैसे-अव्रती द्वारा लाया गया पानी पीना। कदाच वह अनुपयोगपूर्वक लाया गया हो, तो हिंसादि कई प्रकार के दोष लग सकते हैं। 8. शरीर का मैल उतारना। 9. बिना पूंजे शरीर खुजलाना। 10. अकाल में निद्रा लेना जैसे-दिन में नींद लेना, प्रहर रात्रि बीतने से पहले सो जाना।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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