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________________ 268... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... 6. रात्रि के समय कानों में कुंडल (रूई का फोया) डालकर शयन करना चाहिए। यह विधि शरीररक्षा और जीवरक्षा के लिए की जाती है। 7. पौषधव्रत स्वीकार करने के पूर्व शरीर के मुख्य अंगों की शुद्धि अवश्य करनी चाहिए। 8. पौषधव्रत में पहने जाने वाले वस्त्र धुले हुए होना चाहिए। 9. पौषध में पुनः-पुन: वस्त्र परिवर्तन नहीं करना चाहिए तथा जो वस्त्र पहनकर आए हैं, उन्हीं वस्त्रों को प्रतिलेखित कर धारण कर लेना चाहिए। ____ 10. पौषध ग्रहण करने का काल पूर्ण हो रहा हो, तो स्वयं को ही पौषध ले लेना चाहिए, परन्तु गुरू महाराज विराजित हों तो पुन: आवश्यक क्रियाएँ उनके समक्ष करनी चाहिए। ___11. कई जिज्ञासु प्रश्न करते हैं कि जिनप्रतिमा की पूजा करने के पूर्व पौषध लेना चाहिए या बाद में? इस सम्बन्ध में आगम-प्रमाण या अन्य ग्रन्थों के प्रमाण तो देखने को नहीं मिले हैं। फिर भी गुरू-परम्परा द्वारा जैसा सुना गया है, वह यह कि यदि सर्वांग की शुद्धि की हो और पूजा करने का अखण्ड नियम हो, तो यथास्थिति पूजा कर लेना चाहिए। उसके बाद ही पौषधव्रत स्वीकार करना चाहिए, अन्यथा पूजा करने का कोई प्रयोजन स्पष्ट नहीं होता है। यदि सूक्ष्मतापूर्वक चिंतन करें तो स्पष्ट होता है कि पूर्वकाल में जब त्रिकाल पूजा का विधान था और मध्याह्न काल में अष्टप्रकारी पूजा सम्पन्न की जाती थी तब पौषध से पूर्व जल पूजा आदि करने का प्रश्न ही नहीं उठता। पौषध व्रती को सर्व सावध योगों का त्याग करना होता है अत: पौषध से पूर्व देहशुद्धि का कोई हेतु समझ में नहीं आता। 12. पौषधग्राही को पौषध व्रत सम्बन्धी अठारह दोष, पाँच अतिचार और सामायिक में लगने वाले बत्तीस दोष अवश्य टालने चाहिए। नियमत: पौषधव्रत अंगीकार करने के बाद ही रात्रिक-प्रतिक्रमण करना चाहिए। वर्तमान में कुछ लोग प्रतिक्रमण, देववंदन एवं पूजा करने के बाद पौषध उच्चरते हैं, जो अपवादमार्ग है। यह विवेचन जीतव्यवहार के अनुसार किया गया है। किसी भी मौलिकग्रन्थ में उक्त वर्णन उपलब्ध नहीं होता है, केवल अर्वाचीन कृतियों में उल्लिखित है। इस विषयक विस्तृत जानकारी अपेक्षित हो, तो 'सेनप्रश्न' का तृतीय उल्लास पठनीय है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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