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पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...267 पौषध का तात्कालिक फल ___अभिधानराजेन्द्रकोश में पौषधव्रत का फल प्रतिपादित करते हुए कहा गया है कि मणियुक्त स्वर्ण के हजार खम्भों वाला और स्वर्ण के फर्श वाला एक जिनमन्दिर बनवाया जाए, तो उसकी तुलना में एक पौषध का फल
अधिक है। इसमें यह भी निर्दिष्ट है कि आठ प्रहर का एक पौषध करने पर 27,77,77,77,777,77 और 7/9 पल्योपम वर्ष का देव-आयुष्य बँधता है।10
पुरूषार्थसिद्धयुपाय में कहा गया है कि अप्रमत्त एवं शुभ भाव पूर्वक
पौषध करने से अशुभकर्म, दु:ख आदि नष्ट हो जाते हैं और नरकतिर्यंचगति का नाश होता है।11 श्रावक के सामायिकपारण पाठ में कहा गया है कि श्रावक जब तक सामायिक या पौषध में रहता है, तब तक वह श्रमण तुल्य
है।12
पौषधव्रतग्राही के लिए जानने योग्य कुछ बातें
पौषधव्रती के लिए जानने योग्य कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दू निम्नांकित हैं1. पौषधव्रत में आभूषण नहीं पहनना चाहिए।
2. पौषधव्रत ग्रहण करने के अनन्तर जिनालय के दर्शन अवश्य करना चाहिए। यदि दर्शन नहीं करते हैं, तो आलोचना आती है। ____3. जिनालय से बाहर निकलते हुए तीन बार 'आवस्सही' एवं जिनालय में प्रवेश करते समय तीन बार 'निस्सिही' शब्द बोलना चाहिए। उपाश्रय से बाहर निकलते एवं प्रवेश करते समय भी ये शब्द अवश्य बोलने चाहिए। ____4. पौषधव्रत में रहते हुए सौ कदम से अधिक दूर गए हों, तो तुरन्त उपाश्रय में आकर ईर्यापथिक-प्रतिक्रमण करना चाहिए और गमनागमन की आलोचना करना चाहिए।
5. जिस स्थान पर वस्त्र, उपधि, उपकरण आदि की प्रतिलेखना की हो, उस स्थान का प्रतिलेखना के अनन्तर प्रमार्जन करना (काजा निकालना) चाहिए। यदि प्रमार्जन करते हुए धान्य आदि के कण निकल जाएं या मृत जीव-जंतु के कलेवर दिख जाएं, तो उन्हें यतनापूर्वक परिष्ठापित करना चाहिए।