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________________ पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ... 263 नौकरी आदि सावद्य - प्र - प्रवृत्तियों का त्याग करना अव्यापारपौषध है। पूर्वोक्त आहार आदि चारों प्रकार के पौषध देश और सर्व से दो-दो प्रकार के निर्दिष्ट हैं। उनमें आहारपौषध सर्व एवं देश - दोनों प्रकार से किया जाता है। यह परम्परा आचरणावश देखी जाती है, किन्तु शेष त्रिविध पौषध सर्व से होते हैं। पौषध के इन भेद-प्रभेदों की व्याख्या इस प्रकार है - 1. आहार पौषध - चतुर्विध आहार के त्यागपूर्वक उपवास करना सर्व पौषध है और उपवास, आयंबिल, नीवि, एकासन आदि करना देश- पौषध है। 2. शरीरसत्कार पौषध- अमुक शरीर का सत्कार करना और अमुक शरीर का सत्कार न करना देश पौषध है और अहोरात्र के लिए सम्पूर्ण शरीर के सत्कार - विभूषा आदि का त्याग करना सर्व पौषध है। 3. ब्रह्मचर्य पौषध- दिन अथवा रात्रि के लिए ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा करना देश पौषध है और सम्पूर्ण अहोरात्रि के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना सर्व पौषध है। 4. अव्यापार पौषध- अमुक व्यापार करना और अमुक व्यापार न करना देश पौषध है और समस्त प्रकार के व्यापार का त्याग करना सर्व पौषध है। श्रावक यथासामर्थ्य देश या सर्व किसी भी प्रकार का पौषधव्रत स्वीकार कर सकता है। पौषधव्रत की प्रतिज्ञा के विभिन्न विकल्प जैन परम्परा में साधक की क्षमता एवं परिस्थिति के आधार पर व्रतादि स्वीकार करने के विषय में विकल्प (अपवाद) रखे गए हैं, ताकि प्रत्येक साधक यथाशक्ति और यथासुविधा व्रत-प्रत्याख्यान आदि ग्रहण कर सकें। पौषधव्रत स्वीकार करने के 80 विकल्प बताए गए हैं यानी पौषधव्रती अपनी क्षमता के अनुसार 80 विकल्पों में से किसी भी विकल्प द्वारा यह व्रत ग्रहण कर सकता है। उसके लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह चारों ही प्रकारों एवं उनके भेद - प्रभेदों सहित समस्त प्रकार से पौषध ग्रहण करें। पौषधव्रत के विकल्प इस प्रकार हैं इसमें मुख्यतः चार भंग होते हैं- 1. एक के संयोग से होने वाले आठ विकल्प हैं, उनमें आहारादि चारों प्रकार के देश और सर्व के भेद गिनने से 8 विकल्प होते हैं।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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