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________________ 264... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... 2. दो के संयोग से होने वाले चौबीस विकल्प हैं-इनमें आहार एवं शरीर का योग करने पर देश-सर्व की अपेक्षा से चार विकल्प, इसी प्रकार आहार एवं ब्रह्मचर्य का योग करने पर देश सर्व की अपेक्षा से चार, आहार एवं अव्यापार का योग करने पर देश सर्व की अपेक्षा से चार, शरीर एवं ब्रह्मचर्य का योग करने पर देश सर्व की अपेक्षा से चार, शरीर एवं अव्यापार का योग करने पर देश-सर्व की अपेक्षा से चार, अव्यापार एवं ब्रह्मचर्य का योग करने पर देश-सर्व की अपेक्षा से चार-इस प्रकार 4 + 4 + 4 + 4 + 4 + 4 = 24 विकल्प होते हैं। 3. तीन के संयोग से बत्तीस विकल्प होते हैं-इनमें आहार, शरीर, ब्रह्मचर्य का योग करने पर देश-सर्व की अपेक्षा से आठ; आहार, शरीर, अव्यापार का योग करने पर देश-सर्व की अपेक्षा से आठ; आहार, ब्रह्मचर्य, अव्यापार का योग करने पर देश-सर्व की अपेक्षा आठ; शरीर, ब्रह्मचर्य, अव्यापार का योग करने पर देश-सर्व की अपेक्षा से आठ; इस प्रकार 8 + 8 + 8 + 8 = 32 भंग होते हैं। 4. चार के संयोग से सोलह विकल्प बनते हैं- इसमें आहार, शरीर, ब्रह्मचर्य और अव्यापार का योग करने पर देश-सर्व की अपेक्षा से सोलह विकल्प होते हैं। आशय यह है कि व्रती-साधक इनमें से किसी भी विकल्पपूर्वक पौषधव्रत स्वीकार कर सकता है। पौषधधारी के कर्तव्य जैन धर्म में आत्मविकास की अनेक साधनाएँ हैं, उनमें पौषधव्रत का सर्वोत्तम स्थान है। इस व्रत का विधियुत पालन करनेवाला भव्यात्मा अतिशीघ्र मोक्ष सुख को प्राप्त कर लेता है। जैनाचार्यों ने पौषधव्रतधारी के लिए कुछ आवश्यक कर्तव्य बताए हैं जो निम्न हैं 1. पौषधवाही को दिन में अकारण नहीं सोना चाहिए और चरवले का सिरहाना (तकिया) के रूप में उपयोग नहीं करना चाहिए। 2. अकारण एक स्थान से उठकर दूसरे स्थान में गमन नहीं करना चाहिए।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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