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262... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... करना पौषधव्रत है। यहाँ पौषधव्रत से सम्बन्धित कुछ शब्दों के अर्थ इस प्रकार हैं
पौषधोपवास- उपवास के दिन प्रतिज्ञापूर्वक एक अहोरात्र पौषधशाला में आत्मा के निकट रहना पौषधोपवास है।
पौषधशाला- अष्टमी आदि पर्व के दिनों में धर्मानुष्ठान करने का स्थान (शाला) पौषधशाला कहलाता है अथवा जहाँ जैन-गृहस्थ एक अहोरात्रि के लिए समस्त प्रकार की सावध प्रवृत्तियों का त्याग करके आत्म साधना में लीन रहता है, वह स्थान पौषधशाला कहा जाता है।
पौषधविधि- जो क्रिया धर्म को पुष्ट करती है, वह पौषध कहलाती है और उसकी विधि पौषधविधि है।
पौषधिक- उपवास एवं पौषधव्रत ग्रहण किया हुआ श्रावक पौषधिक कहलाता है।
पौषध- यह एक प्रकार का आध्यात्मिक व्रतानुष्ठान है। पौषध के मुख्य प्रकार
आवश्यकसूत्र में पौषध के चार प्रकार कहे गए हैं 1. आहार पौषध 2.शरीरसत्कार पौषध 3. ब्रह्मचर्य पौषध और 4. अव्यापार पौषध।'
1. आहार पौषध- अशन (धान्यादि), पान (पेय पदार्थ), खादिम (फलमेवा आदि), स्वादिम (इलायची, सौंफ आदि) इन चार प्रकार के आहार का सर्वथा त्याग करना एवं आत्म धर्म की विशेष आराधना करना आहार पौषध है।
पौषधव्रत में आहार का त्याग कर देने से आत्म चिन्तन के लिए काफी समय मिल जाता है, जबकि गृहस्थ-जीवन का अधिकतम समय आहार सामग्री को लाने, पकाने, खाने और पचाने में ही व्यतीत होता है।
2. शरीरसत्कार पौषध- स्नान, विलेपन, उबटन, पुष्प, तेल, गन्ध, आभूषण आदि से शरीर को सजाने और संवारने का परित्याग कर शरीर को धर्म प्रवृत्ति में जोडना शरीरपौषध है।
3. ब्रह्मचर्य पौषध- सभी प्रकार की मैथुन-प्रवृत्तियों का त्याग करके ब्रह्मआत्मभाव में रमण करना ब्रह्मचर्यपौषध है।
4. अव्यापार पौषध- आजीविका के लिए किए जाने वाले व्यवसाय,