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पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...261
पौषध संस्कृत के 'उपवषय' शब्द से निर्मित हुआ भी कहा जा सकता है। उपवषथ शब्द के अनुसार धर्माचार्य के समीप या अपने आत्म स्वरूप के निकट रहना पौषध है।
• पौषध का शाब्दिक अर्थ है- पोषना, तृप्त करना। आत्मा को रत्नत्रय की आराधना द्वारा तृप्त करना, पुष्ट करना पौषध है।
• पौषध का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है- 'पोषं-पुष्टिं प्रक्रमाद् धर्मस्य धत्ते करोतीति पोषधः' अर्थात जो धर्म को धारण करता है, वह पौषध है अथवा 'पोषं धत्ते पुष्णाति वा धर्मानिति पोषधः' अर्थात जिस क्रिया या साधना द्वारा धर्म का पोषण होता है, आत्मा बलवती बनती है और पाप प्रवृत्तियों का हास होता है वह पौषध है। . .. आचार्य हरिभद्र के अनुसार जिस क्रिया से धर्म का पोषण होता है, ऐसी जिनभाषित विधि से आहार, देहसत्कार, अब्रह्मचर्य और लौकिकव्यापार-इन चार का त्याग करना पौषध कहलाता है।
• उपासकदशासूत्र में इस व्रत का नाम ‘पोषधोपवास' है। उपासकदशा के टीकाकार अभयदेवसूरि ने इसका निम्न अर्थ किया है- "पोसतोववासस्स' त्ति इह पोषधशब्दोऽष्टम्यादि पर्वसु रूढ़ः, तत्र पोषधे उपवासः पोषधोपवासः सं चाहारादिविषय भेदाच्चतुर्विध इति तस्य"
अर्थात ‘पौषध' शब्द रूढ़ि से अष्टमी आदि पर्व दिनों के लिए प्रयुक्त है। उन पर्यों में उपवास करना ‘पोषधोपवास' है। वह आहार आदि के भेद से चार प्रकार का कहा गया है।
• आवश्यक टीका में पौषधोपवास का लक्षण बताते हुए कहा गया है कि धर्म एवं अध्यात्म को पुष्ट करने वाले विशेष नियम धारण करके उपवास सहित पौषध में रहना पौषधोपवास व्रत है।
• आचार्य हेमचन्द्र पौषधव्रत का स्वरूप बताते हुए कहते हैं कि चार पर्यों में उपवासादि तप, कुप्रवृत्ति का त्याग, ब्रह्मचर्य का पालन और स्नानादि का वर्जन करना पौषधव्रत है।4 ___ सुस्पष्ट है कि अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या-इन पर्व-दिनों में आठ प्रहर तक चतुर्विध आहार का त्याग करना और उपासनागृह में निवास