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240... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
समान समवसरण (नन्दीरचना) की तीन प्रदक्षिणा दें। • फिर छ:मासिकव्रतआरोपण के लिए वासग्रहणपूर्वक गुरू के साथ 18 स्तुतियाँ पूर्वक चैत्यवन्दन (देववन्दन) करें। छ:मासिक सामायिकव्रत स्वीकार करने के निमित्त एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। इस प्रकार नन्दी आदि की सम्पूर्ण विधि पूर्ववत् ही करें।
• प्रस्तुत व्रतारोपण-विधि में विशेष इतना है कि छ:मासिक सामायिकव्रत का पाठ उच्चारण करने से पूर्व गुरु महाराज नूतन मुखवस्त्रिका को वासदानपूर्वक अभिमन्त्रित कर व्रतग्राही को प्रदान करें। व्रतग्राही उसी मुखवस्त्रिका द्वारा छ: माह तक उभयकाल सामायिक करने की प्रतिज्ञा ग्रहण करें तथा उसी मुखवस्त्रिका से छ: महीने तक सामायिक भी ग्रहण करें।
• फिर लग्नवेला (शुभमुहूर्त) के आ जाने पर व्रतग्राही शिष्य सामायिक आरोपित करने का निवेदन करें। तब गुरु भगवन्त तीन बार 'नमस्कारमन्त्र' का स्मरण एवं निम्न पाठ को तीन बार उच्चारित करवाएं
करेंमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि, जाव नियम पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेंमि न कारवेमि, तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तहा दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। तत्थ दव्वओ सामाइयदव्वाइं अहिगिच्च, खेत्तओणं इहेव वा अन्नत्थ वा, कालओणं जाव छम्मासं, भावओणं जाव रोगायंकाइणा परिणामो न परिवडइ ताव मे एसा सामाइयपडिवत्ती।
भावार्थ- हे भगवन् ! मैं सामायिक करने की प्रतिज्ञा करता हूँ और सावध कार्यों को दो करण-तीन योगपूर्वक न करने का प्रत्याख्यान करता हूँ। हे भगवन् ! गुरू साक्षी से अतीतकाल में किए गए सावद्यकार्यों का प्रतिक्रमण करता हूँ, निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ, अपनी आत्मा को उससे विरत करता हूँ। मेरी यह सामायिक प्रतिज्ञा द्रव्य से- सामायिक के उपकरणों को ग्रहण करना है, क्षेत्र से-यहाँ और अन्यत्र, काल से-छ: माह तक, भाव से-रोगादि से ग्रसित होने पर जब तक परिणाम नहीं गिरते हैं, तब तक के लिए है।
• तदनन्तर गुरू सामायिक-व्रतग्राही के मस्तक पर वास प्रदान करें। • तदनन्तर सात बार थोभवन्दन, प्रदक्षिणा, प्रत्याख्यान आदि विधान सम्यक्त्वव्रतारोपण के समान ही किए-करवाए जाते हैं।