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सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...239 विशेष प्रकाश डालती है।
इसी तरह टीका ग्रन्थों का अवलोकन करते हैं, तो हमें सामायिक के प्रकारों, अधिकारों एवं उपायों आदि का निरूपण तो देखा जाता है, किन्तु तत्सम्बन्धी विधि का सूचन प्राप्त नहीं होता है। इससे सुनिश्चित है कि विक्रम की 7वीं-8वीं शती तक सामायिक-विधि का एक सुव्यवस्थित विकास नहीं हो पाया था। तदनन्तर आचार्य हरिभद्रसूरि के ग्रन्थों से लेकर 10वीं-11वीं शती तक के ग्रन्थों में भी यह विधि सुगठित रूप से उपलब्ध नहीं होती है। यद्यपि हरिभद्रसूरिकृत एवं हेमचन्द्रसूरिकृत श्रावकधर्म विषयक ग्रन्थों में सामायिकव्रत को लेकर काफी कुछ कहा गया है, किन्तु तत्सम्बन्धी विधि-विधान का उनमें अभाव है।
. ऐतिहासिक-दृष्टि से अवलोकन करने पर सामायिक विधि का क्रमबद्ध . स्वरूप पूर्णिमागच्छीय तिलकाचार्यकृत सामाचारी53 एवं खरतरगच्छीय विधिमार्गप्रपा54 आदि ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। इसके अनन्तर अभयदेवसूरिकृत पंचाशकवृत्ति, विजयसिंहाचार्यकृत वंदित्तुसूत्रचूर्णि, हेमचन्द्राचार्यकृत योगशास्त्रटीका, कुलमंडनसूरिकृत विचारामृतसंग्रह, मानविजयजीकृत धर्मसंग्रह आदि ग्रन्थों में करेमिभंते सूत्र (सामायिकग्रहणदंडक) पर विचार किया गया है। __इस आधार पर कहा जा सकता है कि सामायिक का एक सुनियोजित स्वरूप सर्वप्रथम तिलकाचार्य सामाचारी एवं विधिमार्गप्रपा इन ग्रन्थों में ही उपलब्ध होता है। यद्यपि सबोधासामाचारी एवं आचारदिनकर में षाण्मासिक सामायिक आरोपणविधि की चर्चा अवश्य की गई है किन्तु सामायिक किस क्रम एवं आलापकपूर्वक ग्रहण करनी चाहिए? उसका कोई निर्देश नहीं है। अतएव सामायिक विधि के सम्बन्ध में तिलकाचार्यकृत सामाचारी और जिनप्रभरचित विधिमार्गप्रपा-ये दोनों ग्रन्थ विशिष्ट स्थान रखते हैं। पाण्मासिक सामायिकआरोपण-विधि
षाण्मासिक सामायिक आरोपण की यह विधि है55.
• सर्वप्रथम शुभमुहूर्त आदि के दिन विशिष्ट श्रद्धावान् एवं बारहव्रत अंगीकार किया हुआ श्रावक छ:मासिक सामायिकव्रत को अंगीकार करने के लिए जिनबिम्ब की पूजा करें। • फिर पूर्वनिर्दिष्ट सम्यक्त्वव्रतारोपण-विधि के