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________________ 238... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... ज्ञाताधर्मकथासूत्र45 में उल्लेख है कि अणगार मेघ ने श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप+6 स्थविरों के पास सामायिक+7 आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, इसके सिवाय कोई चर्चा नहीं है। उपासकदशासूत्र48 में यह वर्णन आता है कि आनन्द श्रावक ने श्रमण भगवान महावीर के समीप पाँच अणुव्रत एवं सात शिक्षाव्रत- ऐसे बारहव्रतरूप श्रावक धर्म को स्वीकार किया। इस पाठांश से सामायिकव्रत स्वीकार करने का उल्लेख तो मिल जाता है, किन्तु किस विधिपूर्वक स्वीकार किया, इसकी चर्चा उपलब्ध नहीं होती है। अन्तकृद्दशासूत्र49 में सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढ़ने का उल्लेख है। अनुत्तरोपपातिकदशासूत्र भी सामायिक आदि ग्यारह अंगों के अध्ययन का ही विवेचन करता है। विपाकसूत्र में कहा गया है कि सुबाहुकुमार ने पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत सम्बन्धी बारह प्रकार के गृहस्थधर्म का यथाविधि पालन करने का नियम ग्रहण किया।50 इन आगमगत उद्धरणों का अध्ययन करने से यह सिद्ध होता है कि आगमग्रन्थों में मात्र सामायिक अंगीकार करने की चर्चा है, किन्तु सामायिक किस प्रकार अंगीकार करनी चाहिए, तत्सम्बन्धी कोई सूचन नहीं है। जहाँ तक आगमेतरकालीन नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका ग्रन्थों का प्रश्न है, उनमें आवश्यकनियुक्ति, भाष्य एवं चूर्णिपरक साहित्य में सामायिक की विस्तृत चर्चा पढ़ने को मिलती है। आवश्यकनियुक्ति। सामायिक अध्ययन पर ही लिखी गई है। इसमें सामायिक का स्वरूप, सामायिक के भेद, उसके अधिकारी की योग्यता, सामायिक कहाँ, सामायिक स्थिति, सामायिक की उपलब्धि, सामायिक कब-कितनी बार ? इत्यादि विषयों का प्रतिपादन २६ द्वारों के आधार पर किया गया है। विशेषावश्यकभाष्य52 यह भी सामायिक विवेचन पर ही निर्मित है। इसे सामायिकभाष्य भी कहते हैं। इसमें सामायिक स्वरूप की विविध रूपों में चर्चा की गई है, किन्तु सामायिक ग्रहण करने के लिए अन्य कौन-कौन सी क्रियाएँ की जाती हैं? उसका स्वरूप अनुपलब्ध है। इस भाष्य पर 1. स्वोपज्ञ-टीका 2. कोट्याचार्यकृत-टीका 3. मलधारी हेमचन्द्रकृत टीकाएँ भी मिलती हैं। उनमें भी प्रमुख रूप से सामायिक आवश्यक का ही प्रतिपादन किया गया है। इसके सिवाय जिनदासकृत चूर्णि भी सामायिक आवश्यक पर
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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