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सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...241 जैन धर्म की विभिन्न परम्पराओं में सामायिक-ग्रहण एवं पारण-विधि
सामायिक-साधना के लिए आबालवृद्ध सभी को एवं प्रत्येक जातिवर्ग को समान अधिकार है, किन्तु सामायिक-साधना का विधिवत् स्वरूप श्वेताम्बर-दिगम्बर आदि परम्पराओं में अपनी-अपनी सामाचारी के अनुसार प्रचलित है। यहाँ यह समझना आवश्यक है कि छ:मासिक सामायिकआरोपण विधि एवं सामायिकग्रहणविधि- इन दोनों में मुख्य अन्तर स्वरूप की दृष्टि से है। छ:मासिक सामायिकआरोपण विधि के समय व्रतग्राही छ: माह आदि के लिए सामायिक करने की प्रतिज्ञा मात्र स्वीकार करता है, उसकी संख्या का निर्धारण करता है, परन्तु वह सामायिक किस प्रकार ग्रहण की जानी चाहिए और सामायिकव्रत को किस क्रम-पूर्वक पूर्ण करना चाहिए, यह दूसरी विधि है। यहाँ सामायिक ग्रहण एवं उसे पूर्ण करने की विधि प्रस्तुत की जा रही है।
खरतरगच्छ की वर्तमान परम्परा में सामायिक ग्रहण की विधि यह है56
सामायिक ग्रहण से पूर्व की विधि- • सर्वप्रथम सामायिक ग्रहण करने का इच्छुक श्रावक या श्राविका शुद्ध वस्त्र पहनें।
• फिर पौषधशाला (उपाश्रय) में साधु के समीप में या गृह के एकान्तस्थान में उच्च आसन चौकी आदि पर ज्ञान या दर्शन के प्रतीकस्वरूप पुस्तक, माला आदि की स्थापना करें। यदि गुरू महाराज के स्थापनाचार्य हों, तो अलग से स्थापना करने की जरूरत नहीं है।
• फिर सामायिक हेतु बैठने की जगह का चरवले द्वारा प्रमार्जन करें यानी उस भूमि को जीव-जन्तु रहित बनाएं।
स्थापनाचार्य की स्थापना विधि- • फिर कटासन (ऊनी वस्त्रखण्ड) को अपने समीप रखकर यदि पुस्तक-माला आदि की स्थापना करनी हो, तो घुटने के बल बैठकर बाएं हाथ में मुखवस्त्रिका ग्रहण करें और दाहिने हाथ को पहले से स्थापित की गई पुस्तक आदि के सम्मुख करके तीन बार नमस्कारमन्त्र बोलें। इसी के साथ 'शुद्धस्वरूप' का पाठ बोलकर पुस्तक आदि