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________________ 236... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... है कि जैन धर्म की श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में सामायिक ग्रहण को लेकर दो प्रकार के विधान हैं- 1. पाण्मासिक सामायिक आरोपण विधि- इस विधान के द्वारा छ: माह तक उभय सन्ध्याओं में सामायिक करने की प्रतिज्ञा करवायी जाती है 2. सामायिक ग्रहण विधि- इस प्रक्रिया द्वारा विधिपूर्वक सामायिक ग्रहण की जाती है। हम यहाँ द्विविधसामायिक विधि के उद्भव विकास की चर्चा करेंगे। षाण्मासिक सामायिक आरोपण-विधि से यह तात्पर्य है कि जिस श्रावक की अन्तर्चेतना में सामायिकधर्मरूप विशुद्ध चारित्रपालन की भावना उत्पन्न हो जाए, वह श्रावक चारित्रमोहनीयकर्म का क्षयोपशम होने पर सर्वविरतिचारित्र ग्रहण करने के लिए भी उद्यत हो सकता है। इस दृष्टि से यह कह सकते हैं कि सर्वविरतिधर्म अंगीकार करने से पहले की यह मुख्य भूमिका है। इस व्रतारोपण द्वारा व्यक्ति छः माह तक उभय सन्ध्याओं में सामायिकव्रत करने का नियम स्वीकार करता है तथा इस प्रतिज्ञा द्वारा सामायिकधर्म में अधिक से अधिक रहने का अभ्यास किया जाता है। साथ ही यह अभ्यास सर्वविरतिधर्म अंगीकार करने का कारण भी बन सकता है। अस्तु, जैन धर्म में देशविरतिचारित्र में प्रवेश देने के लिए व्यक्ति को सामायिकव्रत का आरोपण करवाया जाता है। यों तो बारहव्रत का आरोपण भी देशविरतिचारित्र में प्रवेश देने हेतु ही किया जाता है। सामायिक बारहव्रत का ही एक प्रकार है। यह सामायिक छ: माह के लिए भी स्वीकार की जा सकती है। सम्यक्त्वव्रत एवं बारहव्रत की भाँति ही इसकी विधि-प्रक्रिया होती है। यहाँ यह भी उल्लेख्य है कि सामायिकग्रहण विधि जैन धर्म की सभी परम्पराओं में अपनी-अपनी मान्यतानुसार प्रचलित है, किन्तु छ: माह के लिए सामायिकव्रत का आरोपण करना एवं छ: माह के लिए उभय सन्ध्याओं में सामायिकव्रत की प्रतिज्ञा धारण करना-इस प्रकार की विधिप्रक्रिया का उल्लेख श्वेताम्बर मूर्तिपूजक खरतरगच्छीय परम्परा के सामाचारी ग्रन्थों सुबोधासामाचारी41, विधिमार्गप्रपा42, आचारदिनकर+3 आदि में ही उपलब्ध होता है। इसके अतिरिक्त आगमग्रन्थों एवं आगमेतरग्रन्थों में तत्सम्बन्धी कोई विवरण पढ़ने में नहीं आया है। विक्रम की 12वीं शती से लेकर 16वीं
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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