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सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ... 235
आसन में बैठने का प्रयास हो 3. अनानुपूर्वी का पठन हो यह मन स्थिर करने का सरलतम उपाय है 4. नमस्कारमंत्र का जाप हो 5. स्वाध्याय होधार्मिक ग्रन्थों का पठन या श्रवण हो 6. कायोत्सर्ग की साधना हो और 7. ध्यान हो ।
ये उपाय चित्त को स्थिर बनाए रखते हैं। वस्तुतः सामायिक करने वाले व्यक्ति को सामायिक में स्वाध्याय - जाप आदि ही करने चाहिए। ये सामायिक के कृत्य भी हैं। 39
सामायिकव्रत में प्रयुक्त सामग्री
सामायिकव्रत स्वीकार करने के लिए निम्न वस्तुएँ अनिवार्य मानी गईं हैं- 1. आसन 2. चरवला 3. मुखवस्त्रिका 4 स्थापनाचार्य 5. ठवणी 6. पुस्तक और 7. माला।
सामायिक की ऐतिहासिक विकास यात्रा
जैन धर्म का सामायिक धर्म अत्यन्त विराट् एवं व्यापक है। वह आत्मा का धर्म है, अतः इसकी आराधना किसी भी जाति, देश, मत या पंथ का व्यक्ति कर सकता है। निर्ग्रन्थ-धर्म में सामायिक व्रत की उपासना हेतु विशुद्ध परिणति को महत्त्व दिया गया है। यही कारण है कि माता मरूदेवी को हाथी पर बैठे हुए ही समभाव द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हो गई । इलायची कुमार नट पुत्र था, बांस पर चढ़ा हुआ नाच रहा था। सहसा उसके अन्तर्जीवन में समत्व की नन्हीं सी लहर पैदा हुई, वह इतनी फैली कि उसे अन्तर्मुहूर्त में बांस पर खड़े-खड़े ही केवलज्ञान हो गया । यह सामायिक का चमत्कार है। इसलिए यह मानना होगा कि सामायिक किसी अमुक वेशविशेष में नहीं होती, उसका प्रादुर्भाव समभाव में, माध्यस्थभाव में से होता है, इसलिए राग-द्वेष के प्रसंग पर मध्यस्थ रहना ही सामायिक है और यह मध्यस्थता अन्तर्चेतना की ज्योति है । भगवतीसूत्र में इसी चर्चा को लेकर एक महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर है, जो द्रव्यलिंग की अपेक्षा भावलिंग को अधिक महत्त्व देता है। 40
जैन धर्म में किसी व्यक्ति को जैन श्रावक की विशिष्टतर दीक्षा ग्रहण करनी हो या करवानी हो, उसके लिए छ: मासिक सामायिकव्रत - आरोपण की विधि की जाती है। इस विषय की चर्चा करने से पूर्व यह समझ लेना जरूरी