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सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...229 सामायिक में कितने दोष लग सकते हैं?
सामायिकव्रत स्वीकार कर लेने के पश्चात् भी ज्ञात-अज्ञात रूप से बत्तीस दोषों के लगने की संभावनाएँ रहती हैं। इनमें दस मन सम्बन्धी, दस वचन सम्बन्धी और बारह काया सम्बन्धी दोष लगते हैं। साधक को इन दोषों से रहित सामायिक करनी चाहिए, वही शुद्ध सामायिक कही गई है। सामायिक से सम्बन्धित दोष निम्न प्रकार हैं1. मन सम्बन्धी दस दोष 1. अविवेक- सामायिक के प्रयोजन और स्वरूप के ज्ञान से वंचित
रहकर सामायिक करना। 2. यशोवांछा- स्वयं को यश मिले, अपनी वाह-वाह हो ऐसे प्रयोजन से . सामायिक करना। 3. लाभ- सामायिक करूँगा, तो धन-लाभ मिलेगा, अन्य भौतिक लाभ
भी होंगे-इस भाव से सामायिक करना। 4. गर्व- 'मैं बहुत सामायिक करने वाला हूँ,' 'मेरी बराबरी कौन कर
सकता है' इत्यादि गर्वपूर्वक सामायिक करना। 5. भय- मैं अपनी जाति में ऊँचे घराने का व्यक्ति हूँ, यदि सामायिक
न करूँ, तो लोग क्या कहेंगे ? इस प्रकार लोक-निन्दा के भय से
सामायिक करना। 6. निदान- नियाणा करना, प्रतिफल की कामना करना। जैसे- धन, स्त्री
अथवा व्यापार में खास लाभ प्राप्त करने के प्रयोजनपूर्वक सामायिक
करना। 7. संशय- मैं जो सामायिक करता हूँ, उसका फल मुझे मिलेगा या नहीं?
सामायिक करते-करते इतने दिन हो गए, फिर भी कुछ फल नहीं मिला,
इस तरह सामायिक फल के सम्बन्ध में संशय रखते हुए सामायिक करना। 8. रोष- क्रोधपूर्वक सामायिक करना। 9. अविनय दोष- सामायिक के प्रति अविनय या अनादर भाव रखते हुए
सामायिक करना। 10. अबहुमान- आन्तरिक उत्साह के बिना या किसी दबाव के कारण
सामायिक करना।