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230... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
ये दस दोष मन द्वारा लगते हैं।29 2. वचन सम्बन्धी दस दोष । 1. कुवचन- सामायिक में असभ्य, अपमानजनक, कुत्सित, वीभत्स
शब्द बोलना। 2. सहसाकार- बिना सोचे-विचारे, मन में जैसा आए. वैसे वचन बोलना। 3. स्वच्छंद- शास्त्र सिद्धान्त के विरूद्ध कामवृद्धि करने वाले वचन
बोलना। 4. संक्षेप- सूत्रपाठ आदि का उच्चारण पूर्णतया न करके उसका संक्षेप
करना, यथार्थ रूप में न पढ़ना, आधा-अधूरा बोलना। 5. कलह- सामायिक में कलह पैदा करने वाले शब्द बोलना।। 6. विकथा- वह वार्ता जो चित्त को अशुभ भाव या अशुभ ध्यान की
ओर प्रवृत्त करती हो, विकथा कहलाती है। विकथा चार प्रकार की होती है-स्त्रीकथा, भक्तकथा, राजकथा और देशकथा। सामायिक में विकथा करना। 7. हास्य- सामायिक में किसी की मजाक-मसखरी करना, कटाक्ष वचन
बोलना, कौतूहल करना, जानबूझकर ऊंची-नीची आवाज में
बोलना आदि। 8. अशुद्ध- सामायिक के सूत्र पाठों या अन्य स्वाध्याय आदि के सूत्रों को
जल्दी-जल्दी बोलना, उच्चारण पर ध्यान न देना आदि। 9. निरपेक्ष- सूत्र सिद्धान्त की उपेक्षा करना अथवा बिना समझे उल्टी
पुल्टी बातें प्रस्तुत करना। 10. मुणमुण- सामायिक के पाठादि का स्पष्ट उच्चारण न करना, सूत्र पाठों
__ को गनगनाते हुए बोलना अर्थात नाक से आधे अक्षरों का उच्चारण .. कर जैसे-तैसे पाठोच्चारण करना।
ये दस दोष वचन द्वारा लगते हैं।30 3. काया सम्बन्धी बारह दोष 1. कुआसन- सामायिक में पैर पर पैर चढ़ाकर अभिमान पूर्वक बैठना। 2. चलासन- अस्थिर और झूलते आसन पर बैठना अथवा बैठने की
जगह पुनः-पुनः बदलना।