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________________ सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...221 खींचती जाती है। मानवीय खान-पान, हलन-चलन, रहन-सहन आदि पर उत्तर या दक्षिण-दिशा का विशेष प्रभाव पड़ता है। एतदर्थ सामायिक पूर्व या उत्तर दिशा के सम्मुख होकर करनी चाहिए। सामायिक का सामान्य काल दो घड़ी ही क्यों यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि सामायिक की काल मर्यादा दो घड़ी ही क्यों ? संभवत: यह काल मर्यादा गृहस्थ-जीवन की मर्यादाओं और मनुष्य की चित्तशक्ति को लक्ष्य में रखकर निश्चित की गई है। सामायिक का काल इतना लंबा न हो कि जिससे दैनिक उत्तरदायित्व और कार्यों से निवृत्त होकर उतने समय के लिए भी अवकाश पाना गृहस्थों के लिए मुश्किल हो। तदुपरान्त सामायिक में स्थिरकाय होकर एक आसन पर बैठना अत्यावश्यक है। भूख, प्यास, शौचादि व्यापारों को लक्ष्य में रखकर और देह भी जकड़ न जाए, उसे ध्यान में रखकर यह कालमर्यादा निश्चित की गई है। सामायिक में बैठने वालों को सामायिक प्रोत्साहक होना चाहिए, शरीर के लिए वह दंड नहीं बनना चाहिए। ___एक अन्य दृष्टि से भी यह काल उचित माना गया है। सामायिक का महत्त्वपूर्ण पक्ष है-चित्त को समभाव में रखना। सामान्य मानव का मन एक विचार, एक विषय या एक चिंतन पर दो घड़ी से अधिक स्थिर नहीं रह सकता है। दो घड़ी के बाद चित्त में चंचलता और विषयांतर का प्रवेश होता ही है। इसी प्रसंग में भद्रबाहुस्वामी ने आवश्यकनियुक्ति में कहा है'अंतोमुत्तकालं चित्तस्सेगग्गया हवइ झाणं' अर्थात चित्त किसी भी एक विषय पर एक मुहूर्त तक ही ध्यान कर सकता है। आधुनिक मानसशास्त्री और शिक्षाशास्त्रियों ने भी इस बात का समर्थन किया है। इस काल मर्यादा के पीछे तीसरा तथ्य यह है कि यदि गृहस्थों के लिए ऐसी कोई काल मर्यादा रखी नहीं होती, तो इस क्रिया- विधि का कोई गौरव न रहता और अनवस्था प्रवर्तमान होती। निश्चित काल मर्यादा न होने पर कोई दो घड़ी सामायिक करता, तो कोई घड़ी भर ही, तो कोई पाँच-दस मिनिटों में ही किनारा कर लेता अतः सामायिक करने की वृत्ति बढ़ती जाए, एक- दूसरे का अनुकरण भी होने लगे और अंत में सामायिक के प्रति अभाव भी उत्पन्न न हो-इस दृष्टिकोण से भी सामायिक का कालमान निश्चित होना
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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