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________________ सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ... 217 शुद्धियाँ सामायिक व्रत को सफल बनाने में निमित्तभूत बनती हैं अतः प्रत्येक साधक को निम्न छः प्रकार की शुद्धिपूर्वक ही सामायिक करनी चाहिए 1. द्रव्यशुद्धि - वस्त्र एवं उपकरण का शुद्ध होना द्रव्यशुद्धि है। उपासकदशासूत्र एवं उसकी टीकाओं में वस्त्रशुद्धि के विषय में यह निर्देश प्राप्त होता है कि सामायिक में सामान्य वेशभूषा और आभूषण आदि का त्याग करना चाहिए। उस युग में मात्र अधोवस्त्र (धोती) ही सामायिक की वेशभूषा थी, जबकि वर्तमान में उत्तरीय (ऊपर ओढ़ने का वस्त्र) भी ग्रहण किया जाता है। वस्त्र शुद्धि के सम्बन्ध में यह ध्यान रखना चाहिए कि वस्त्र गंदे न हों, चटकीले - भड़कीले न हों, मल-मूत्र में उपयोग लिए हुए न हों, सादे हों और लोकविरूद्ध न हों। आसन, चरवला, मुखवस्त्रिका, माला आदि द्रव्य उपकरण माने जाते हैं। ये उपकरण शुद्ध हों, उसके विषय में यह जानना जरूरी है कि जो अधिक हिंसा से निर्मित न हुए हों, सौन्दर्य की बुद्धि से न रखे गए हों, संयम की अभिवृद्धि में सहायक हों, जिनके द्वारा जीवरक्षा भलीभाँति की जा सकती हो, ऐसे द्रव्य रखना उपकरण शुद्धि है। वर्तमान स्थिति में द्रव्यशुद्धि अवश्य ही विचारणीय है। कितने ही साधक सामायिक में कोमल रोएं वाले गुदगुदे आसन रखते हैं अथवा सुन्दरता के लिए रंग-बिरंगे फूलदार आसन बना लेते हैं, किन्तु इस तरह के आसनों की सम्यक् प्रतिलेखना नहीं की जा सकती अतः आसन सादा होना चाहिए। कुछ बहनें मुखवस्त्रिका को गहना बनाकर ही रख देती हैं, गोटा लगाती हैं, सलमे से सजाती हैं, धागा डालती हैं। ऐसा करना सामायिक के शान्त वातावरण को कलुषित करना है अतः मुखवस्त्रिका सादी-सफेद-स्वच्छ होनी चाहिए। माला सूत की होनी चाहिए। प्लास्टिक की माला अशुद्ध मानी गई है। ऐसी मालाओं पर किया गया जाप प्रभावकारी नहीं होता है। 2. क्षेत्रशुद्धि - क्षेत्रशुद्धि से तात्पर्य है - सामायिक योग्य उत्तम स्थान। जिन स्थानों पर बैठने से चित्त चंचल न बनता हो, विषय-विकार उत्पन्न न होते हों, क्लेश होने की संभावना न बनती हो, मन स्थिर रहता हो, वह क्षेत्र शुद्ध है। पौषधशाला, उपाश्रय, एकान्तस्थल आदि शुद्ध क्षेत्र माने गए हैं। ये स्थान आराधना के लिए निर्जरा प्रधान कहे गए हैं। इनके सिवाय भी जहाँ
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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